चंडीगढ़ जहां पत्थरों में है जिंदगी

  • SocialTwist Tell-a-Friend

उत्तर भारत के प्रमुख शहर चंडीगढ़ के तीन ओर पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की सीमाएं लगती हैं। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कल्पना के इस शहर को मूर्त रूप देने का कार्यभार सौंपा गया था एक फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कारबूजयर को। कारबूजयर ने अपने ममेरे भाई पियरे जेनेरेट तथा मैक्सवेल व जेनड्रेन नामक दंपती के सहयोग से इस नगर का निर्माण किया। इसका नियोजन करते हुए उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि यहां आधुनिक युग की सभी सुविधाओं के साथ-साथ प्राचीन भारतीय संस्कृति की उदात्त परंपराएं भी साफ तौर पर दिखाई दें। इसीलिए यहां चौड़ी सपाट सड़कों पर भी भीड़-भाड़ से मुक्त प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया जा सकता है।

सुखना झील

कारबूजयर की सबसे पहली कोशिश यह थी कि कोट शिवालिक की पहाडि़यों के दामन में बहते बरसाती बड़े नदीनुमा चौ पलाली का रो (नाला) और सुखना चौ पर इस प्रकार बांध बनाया जाए कि इसका बरसाती पानी शहर में न फैले। उस बांध पर चालीस फुट का एक पैदल रास्ता बनाया गया। इसके चारों ओर पेड़-पौधों की भरमार है। यहां कटावदार सीढि़यां तो हैं, लेकिन आम रास्ता नहीं है और यह स्थिति इसे एक उम्दा और खूबसूरत सैरगाह बनाती है। शहरवासियों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी यह आकर्षण का प्रमुख केंद्र है।

इस तरह सेक्टरों में बंटे चंडीगढ़ शहर के पहले सेक्टर का उद्भव हुआ और यह सेक्टर एक झील के नाम से विख्यात हुआ। शहर के प्रमुख टाउन प्लैनर नरिन्दर सिंह लांबा और चीफ इंजीनियर जे.सी. वर्मा ने खूबसूरत सुखना झील को इस तरह बनवाया कि यह चंडीगढ़वासियों की मनपसंद सैरगाह बन सके। आज भी सुबह-शाम के वक्त यहां तमाम लोगों को सैर करते देखा जा सकता है।

सन 1958 में बनी तीन किमी लंबी इस झील के आसपास 2452 हेक्टेयर जमीन पर पेड़-पौधों की हरियाली इतनी खुशनुमा दृश्यावली पेश करती है कि फोटोग्राफर अपने कैमरे में डूबते सूर्य और उमड़ते- घुमड़ते बादलों के झुरमुट को झट से कैमरे में कैद कर लेने को हमेशा आतुर रहते हैं।

आम फेस्टिवल

इसी सुखना झील पर हर वर्ष आम फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के अलावा सावन की तीज के झूले भी यहां पड़ते हैं। चंडीगढ़ आने वाले पर्यटकों का यह सर्वाधिक प्रिय स्थल है। सायबेरियन पक्षियों की सर्दियों की शरणस्थली सुखना झील में मोटरबोटिंग की सख्त मनाही है, लेकिन नौका विहार, स्कीइंग और पानी के अन्य खेल यहां खेले जा सकते हैं। इस शहर की खासियत है स्वच्छता। चंडीगढ़ के लोग खुद अपने शहर की सफाई के प्रति बहुत सतर्क रहते हैं। समुद्रतट से 365 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 114 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले सन 1953 में निर्मित इस शहर में कभी जनसंख्या इतनी कम थी कि सिर्फ सुबह 9.30 बजे और शाम पांच बजे कार्यालयों की छुट्टी के समय ही लाल बत्ती पर लोगबाग दिखते थे। बहुत ही शांत माना जाता है यह शहर। कई लोग तो इसे पत्थरों का शहर भी कहते हैं। उनका मानना है कि यह बसाया हुआ शहर है और इसकी कोई आत्मा नहीं है। इसके लोगों की आर्थिक स्थिति का अंदाज उनके रिहायशी इलाके से आंका जाता है। हर सेक्टर एबीसीडी चार भागों में विभक्त है। ए-बी अभिजात्य, सी मध्यम और डी निम्न मध्यमवर्गीय लोगों के लिए। मुगल शैली की भवन निर्माण कला का अध्ययन करने आए विदेशी पत्रकार कार्ल लुडगिस्ट चंडीगढ़ को एक नजर देखने के बाद अभिभूत रह गए थे।

चंडीगढ़ के चीफ कमिश्नर रह चुके स्व. एम.एस. रंधावा की फूलों और पेड़-पौधों में विशेष रुचि थी। उन्होंने सारे शहर में सड़कों के किनारे वीथियों पर अमलतास, गुलमोहर, सावनी, पोयनसंटिया, कचनार के पेड़ इस प्रकार लगवाए कि सड़कों के किनारे लगे ये पेड़ हर मौसम में फूलों से लदे दिखें और आते-जाते लोगों का झुककर स्वागत करें। यहां हर चौराहे को अत्यंत उत्कृष्ट सजावटी पौधों से इस प्रकार संवारा गया है कि पर्यटक शहर में कदम रखते ही सफर की थकान भूल जाते हैं।

रोज गार्डन

चंडीगढ़ को बागों का शहर भी कहा जा सकता है। खाने-पीने के शौकीन शहरवासी ताजा फूलों के भी बेहद शौकीन हैं। शहर के बीचोबीच सेक्टर-16 में तीस एकड़ भूमि पर फैला है जाकिर हुसैन रोज गार्डन। गुलाब के फूलों की 1600 से भी अधिक जातियों को यहां ले आने का श्रेय भी श्री रंधावा को ही दिया जाता है। उन्होंने ही  चीफ इंजीनियर और आर्किटेक्ट के साथ मिलकर इस रोज गार्डन को ऐसा रूप दिया कि यह गार्डन एक घाटी का आभास देता है। अब यह युवा प्रेमी युगलों की पसंदीदा जगह है और शहरवासियों के लिए सुबह की सैर के लिए बेहतरीन सैरगाह। रोज गार्डन में हर वर्ष रोज फेस्टिवल नाम से एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें सांस्कृतिक संध्या के अतिरिक्त दिन भर रोज मेले में बच्चों के लिए मिस रोज, मिस्टर रोज और विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। प्रतिवर्ष लगने वाले इस रोज फेस्टिवल में आने वाले 40 हजार से अधिक लोगों के उत्साह को देखकर फूलों और बागों के प्रति चंडीगढ़वासियों के प्रेम को समझा जा सकता है।

लेजर वैली

सेक्टर-10 में 20 एकड़ भूमि में फैली है यह घाटी। यहां बुगनवेला की 3000 से भी अधिक किस्में देखी जा सकती हैं। यहां हर वर्ष बुगनविला शो का आयोजन भी किया जाता है। सेक्टर 10 में ही स्थित गवर्नमेंट म्यूजियम और आर्ट गैलरी भी यहां आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इस म्यूजियम में गांधार शैली की बौद्धकालीन प्रतिमाओं के अलावा राजपुर, कांगड़ा, पहाड़ी और मुगल शैली की कलाकृतियां भी देखी जा सकती हैं।

बॉटेनिकल गार्डेन

सुखना झील और रॉक गार्डन के बीचोबीच 88 एकड़ भूमि पर बना है वनस्पति जगत का यह अनुपम गार्डन जो पेड़-पौधों में रुचि रखने वालों के लिए अच्छा पर्यटन स्थल है।

रॉक गार्डन

सेक्टर एक में मौजूद यह गार्डन एक व्यक्ति के एकल प्रयास का अनुपम और उत्कृष्ट नमूना है, जो दुनिया भर में अपने अनूठे उपक्रम के लिए अत्यंत सराहनीय रहा है। रॉक गार्डन के निर्माता नेकचंद एक कर्मचारी थे जो दिनभर साइकिल पर इधर से उधर बेकार पड़ी टयूब लाइट्स, टूटी-फूटी चूडि़यों, प्लेट, चीनी के कप, फ्लश की सीट, बोतल के ढक्कन व किसी भी बेकार फेंकी गई वस्तुओं को बीनते रहते और उन्हें यहां सेक्टर एक में इकट्ठा करते रहते। धीरे-धीरे फुर्सत के क्षणों में लोगों द्वारा फेंकी गई फालतू चीजों से ही उन्होंने ऐसी उत्कृष्ट आकृतियों का निर्माण किया कि देखने वाले दंग रह गए। नेकचंद के रॉक गार्डन की कीर्ति अब देश-विदेश की सरहदें पार कर कलाप्रेमियों के दिलों में घर कर चुकी है। अब आलम यह है कि देशी हो या विदेशी पर्यटक चंडीगढ़ जाए और रॉक गार्डन न देखे ऐसा संभव नहीं।

चंडिका देवी

शक्ति की देवी चंडिका देवी का मंदिर जो कालका-चंडीगढ़ मार्ग पर स्थित है, हिंदुओं की प्रिय धर्मस्थली है। इसी धर्मस्थल के नाम पर बसे चंडीगढ़ शहर में कई संप्रदायों के लगभग साढ़े सात लाख से भी अधिक लोग रहते हैं, जो बड़े सौहार्द से सभी पर्व मनाते हैं। पंजाबी मूल के अधिक लोग यहां बसे हैं, इसलिए यहां की प्रमुख भाषा पंजाबी, हिंदी और अंग्रेजी है। केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की राजधानी भी है। यहां की जलवायु बहुत ही सुखद है। भीषण गर्मी में यहां सूती कपड़े और जींस आदि पहने हुए लोग देखे जा सकते हैं। सर्दियों के लिए गर्म मोजे, स्वेटर, जैकेट और शॉल पर्याप्त हैं।

यहां सेक्टर-17 में स्थित बाजार की शान देखते ही बनती है। देश के सबसे महंगे शहरों में गिने जाने वाले इस शहर के बाजार में यदि शापिंग करने का मन हो तो विंडो शॉपिंग से मन को बहलाने का मौका कभी न चूकें। पंजाबी व्यंजन तो यहां हर तरफ मिलते हैं। इसके अलावा उत्तर व दक्षिण भारतीय तथा कांटिनेंटल व्यंजन भी यहां रेस्तराओं में आसानी से मिलते हैं।

यातायात

चंडीगढ़ रेल, सड़क और वायुमार्ग से दिल्ली से सीधा जुड़ा हुआ है। शहर में यातायात के लिए टूरिस्ट टैक्सियां उपलब्ध हैं। चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर सिटको के कार्यालय से संपर्क साधा जा सकता है और रिक्शा स्टैंड से प्रीपेड आटो रिक्शा भी लिया जा सकता है। वैसे निकटतम स्थान के लिए रिक्शा लोगों की पसंदीदा सवारी है। शहर के सेक्टर 14 में पंजाब विश्वविद्यालय और उच्चतम बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पीजीआई अस्पताल भी हैं।

VN:F [1.9.1_1087]
Rating: 9.5/10 (2 votes cast)
चंडीगढ़ जहां पत्थरों में है जिंदगी, 9.5 out of 10 based on 2 ratings



Leave a Reply

    * Following fields are required

    उत्तर दर्ज करें

     (To type in english, unckeck the checkbox.)

आपके आस-पास

Jagran Yatra