हरिपुरधार चलें इस बार

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वैसे तो हरिपुरधार जाने के चार रास्ते हैं किंतु हम नाहन से रेणुका होकर जाएंगे। रेणुका में आपने रात्रि विश्राम किया हो तो अगली सुबह नाश्ता कर हरिपुरधार के लिए रवाना हो सकते हैं।

पहले संगडाह (26 किमी) जाना होगा। यहां तक सड़क की हालत इतनी अच्छी नहीं रहती लिहाजा आराम से ड्राइव करना होगा। सड़क पर ज्यादा ट्रैफिक नहीं होता। हां, माइनिंग क्षेत्र होने के कारण छोटे-बड़े ट्रक जरूर मिलते हैं। रेणुका से निकल यात्रा शुरू करते ही हम उस क्षेत्र में आ जाते हैं जहां दिल्ली के लिए पानी सप्लाई करने के लिए बांध बनाया जा रहा है। यहां कुछ किलोमीटर दूर एक आकर्षक जलस्त्रोत है जो पर्यटकों को रोकता है। यह क्षेत्र दिलचस्प संस्कृति वाला इलाका है। बहुपति व बहुपत्नी सरीखी परंपराओं के चिह्न आज भी यहां हैं।

संगडाह-एक यादगार स्थान

संगडाह प्रसिद्ध पर्यावरणरक्षक स्वर्गीय किंकरी देवी के लिए खासा मशहूर है। यहां सादा खाना उपलब्ध है वह भी आप समय पर पहुंच जाएं तब। हम नाश्ता कर चले थे व आराम से आए। सामने एक दुकान पर बन रहे आलू के परांठों की दूर से आ रही महक ने बुला ही लिया। अदरक, लहसुन, हरी मिर्च, धनिया डाले परांठे ताजा दही के साथ खाकर मजा आ गया। यहां से एक सड़क हरिपुरधार (26 किमी) के लिए चढ़ती है। सर्पीले पहाड़ी रास्तों की ऊंचाइयों पर फैलती हरियाली हमारे साथ हो लेती हैं। गहरी खाइयां, विभिन्न किस्म के वृक्ष, पक्षियों की चहचहाहट, आकर्षक पत्थरों व नीले आसमान के सानिध्य में थोड़ी देर रुककर लगता है जिंदगी में कभी-कभार पिकनिक होती रहे तो मजा जारी रहे।

एक और दिलकश जगह ने हमें टोका तो सब तरफ उन्मुक्त प्रकृति बांहे खोले पुकारती लगी। यहां सभी नाटी (पहाड़ी डांस) करने लगे जिसके प्रेरक बकरियां चरा रहे चरवाहे बने। बुरांश, कैल, देवदार के दरख्तों की साफ-सुथरी व स्वास्थ्यव‌र्द्धक हवा को जीवनसात करते हम हरिपुरधार पहुंचे। यह एक छोटा पहाड़ी कस्बा है। ठहरने और खाने-पीने की बेहतर व्यवस्था यहां है। शाम और चाय का वक्त हो गया था सो अदरक वाली चाय पी तो मानो शरीर में जान आ गई।

हरिपुरधार का असली आकर्षण मुख्य बाजार से दो किमी दूर शक्तिशालिनी देवी भंगयाणी माता का मंदिर है। लगभग 140 सीढि़यां चढ़कर हम मंदिर के प्रांगण में पहुंचे तो लगा यहां काफी ठंड है। मंदिर परिसर में ही रुकना तय हुआ। चाय पीकर ठिठुरते हुए मंदिर के चारों ओर टहलने लगे मगर मन रजाई में जाने को आतुर रहा।

खाना बनने में समय था। रसोई के बाहर अलाव में हरियाणा व पंजाब से आए स्थानीय बाशिंदे आग सेंक रहे थे। यहीं बैठे, हवा व आग की लपटें दोनों तेज थीं। बातों-बातों में पता चला कि हरिपुरधार शिमला (7350 फुट) से भी ज्यादा ऊंचाई 7700 फुट पर स्थित है। दक्षिणी हिमाचल की सबसे ऊंची (11965 फुट) पर्वत चोटी चूढ़धार (चूढ़चांदनी) यहां से दिखती है। आठ घंटे ट्रैकिंग कर वहां पहुंचा जाता है। यह स्थल भगवान शिव की तपस्थली व उनके बारह निवासों में से एक मानी जाती है। हमने सोचा खाना खाने से पहले और सूचनाएं खा ली जाएं।

शिरगुल महादेव की वीरगाथा

लोककथाओं में प्रचलित शिरगुल महादेव की वीरगाथा के अनुसार जब वह सैकड़ों हाटियों (हाट लगाने वाले) के दल के साथ दिल्ली गए तो उनकी दिव्यशक्ति युक्त लीलाओं से दिल्लीवासी आश्चर्यचकित रह गए। तत्कालीन शासक ने स्तब्ध हो किसी तरह से उन्हें शक्तिक्षीण कर चमड़े की बेडि़यां डाल दीं। उनकी मुक्ति के लिए बागड़ देश के गोगापीर महाराज ने वहां काम करने वाली माता भंगयाणी से मदद ली तो माता की खुफिया मदद से गोगापीर शिरगुल महाराज को तुर्की शासक के चुंगल से छुड़ा सके। चूढ़धार पर्वत के आसपास का इलाका वन्य अभयारण्य भी है और यहां काफी जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं। किवंदती यह भी है कि यहीं हनुमान को संजीवनी बूटी मिली थी।

यहां का पानी मिनरल वॉटर से ज्यादा स्वच्छ है जो पियो तो प्यास बुझाता है और भूख भी बढ़ाता है। प्रमाण रहा, मंदिर की शाकाहारी रसोई में बना सादा खाना, स्थानीय पहाड़ी उड़द, देसी घी में पके चावल व चूल्हे में सिके फुल्के। पेट भरने के बाद भी खाए, मन जो भरना था। हरिपुरधार की सुबह मिसाल रही। मंदिर में प्रार्थना कर प्रांगण में पहुंचे तो सामने हिमालय पर्वत की बर्फ लदी श्रृंखलाएं दूर-दूर तक फैली दिखी। ज्यूं-ज्यूं सुबह का उजाला फैलता रहा हमारी आंखें नयनाभिराम हिमालय पर फैली बर्फ की मादक खूबसूरती के बदलते आयामों को आत्मसात करने में अधिक व्यस्त होती रही। सूर्य अपना प्रभुत्व जमाता रहा और सामने हिमालय रंग बदलते और अधिक लुभावने होते गए कितना समय बीत गया पता नही चला। सामने हिमालय के दर्शन करके लगा यहां आना सार्थक हो गया। बर्फ  हरिपुरधार में भी पड़ती है मगर अब कम।

नयनाभिराम सौन्दर्य

हरिपुरधार टहलने लगे तो पाया यहां मां प्रकृति ने दिल खोलकर सुंदरता रची है। जिस तरफ भी नजर गई सबकुछ नयनाभिराम, मनमोहक, मंत्रमुग्ध करता लगा। अड़ोस-पड़ोस में देवदार, कैल, खूरशू व बान के वृक्षों से भरे जंगल। स्वच्छ स्वस्थ  पर्यावरण में कितनी ही तरह के पक्षियों के  उन्मुक्त सुरीले संवाद, यहां वहां फैली असंख्य दुर्लभ, स्वास्थ्य मित्र जड़ी-बूटियां। मंदिर से लगभग एक किलोमीटर दूर तत्कालीन सिरमौर रियासत की सरहद पर राजा हरिप्रकाश (1694-1703) द्वारा सीमा निगरानी करने के लिए बनाया लुठकड़ी का किला व तत्कालीन जुब्बल रियासत की सरहद पर बना किला व हैलीपैड का विहंगम दृश्य- सभी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। ट्रैकिंग प्रेमियों के लिए यह क्षेत्र लाजवाब है।

कहॉ ठहरें

हरिपुरधार मंदिर में ठहरने के लिए चार फैमिली सूट (दो कमरे वाले) के अलावा 30 कमरे उपलब्ध हैं। पार्किग की कोई दिक्कत नहीं। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए आधा दर्जन से ज्यादा दुकानें हैं। लाइब्रेरी बन रही है। मंदिर समिति ने मंदिर के निकट पर्यटन विभाग के सहयोग से ट्रैकर होस्टल निर्मित किया गया है। चाहें तो नजदीक स्थित पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस या प्राइवेट आरामगाह में भी ठहर सकते हैं। हमारा तो मंदिर परिसर में वहां के कार्यकर्ताओं की सादगी व समर्पित आवभगत ने दिल जीत लिया। हरिपुरधार की, थोड़ी सी साहसिक मानी जा सकने वाली यात्रा महाप्रसिद्ध पर्यटक स्थलों की यात्रा से उन्नीस नहीं बीस ही रही।

एक नजर में

हरिपुरधार नाहन से 106 किलोमीटर है। ददाहू तक बसें जाती हैं। अंधेरी तक जीपें भी चलती हैं। आगे साधन कम हैं लेकिन अपना वाहन तो कोई दिक्कत नहीं।

समुद्र तल से 2687 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हरिपुरधार में गरमियों में भी मौसम शाम को ठंडा हो जाता है। हल्के गरम कपड़ों की जरूरत पड़ सकती है।

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