मालदीव: समुद्र की अथाह खूबसूरती का दूसरा नाम

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मालदीव का भारत से खासा अपनापा है। एक तो यह भारत के बेहद नजदीक है-श्रीलंका से महज 700 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में। यहां की आबादी में ज्यादातर लोग सदियों पहले दक्षिण भारतीय इलाकों (मुख्य रूप से केरल) से गए हुए हैं। कहा जाता है कि सीलोन (श्रीलंका) के प्रभाव में पहले यहां के लोग बौद्ध थे। बाद में 12वीं सदी में यह एक सुन्नी मुसलमान देश हो गया, जो वह आज भी है। वैसे इतिहास बताता है कि यहां पर आबादी तीन हजार साल पहले भी मौजूद थी। यहां के नाम को लेकर भी कई सारे दावे किए जाते रहे हैं। इसके नाम का एक अर्थ पहाड़ी द्वीप से लगाया जाता है और कहा जाता है कि यह मलयालम में मलय अथवा तमिल में माला (दोनों का अर्थ पर्वत से है) और दीवु (यानी द्वीप) से बना हुआ है। कुछ विद्वान यह दावा करते हैं कि इसका नाम संस्कृत के मालाद्वीप यानी द्वीपों की माला से बना है। वहीं कुछ लोग यह मानने वाले भी हैं कि इसका नाम अरबी के महल शब्द का अपभ्रंश है। अतीत व इतिहास जो भी हो, यह सुकून भरी छुट्टियों के लिए दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है।

इतिहास

सोलहवीं सदी से पहले पुर्तगालियों, फिर डच और अंत में अंग्रेजों का उपनिवेश रहने के बाद यह देश 1965 में आजाद हुआ। बमुश्किल सवा तीन लाख की आबादी वाले इस देश की एक तिहाई जनसंख्या राजधानी माले में रहती है। इस देश के कुल क्षेत्रफल में केवल एक फीसदी हिस्सा जमीन का है। बाकी निन्यानवे फीसदी पानी ही पानी। यहां 26 द्वीपसमूहों में 1192 छोटे-छोटे द्वीप हैं जिनमें से केवल दो सौ पर ही लोग रहते हैं। इसके अलावा 87 द्वीप खास तौर पर टूरिस्ट रिसॉर्ट के लिए हैं। जाहिर है, ये रिसॉर्ट आपके जैसे पर्यटकों की ही प्रतीक्षा कर रहे हैं। मौसम और माहौल, दोनों ही लिहाज से यह बेहद शानदार जगह है। इस धरती पर प्रकृति के जो अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं, उनमें से एक समुद्र का जो नजारा यहां मिलता है, वह दुनिया में कहीं भी और मिलना दुर्लभ है। समुद्र और उससे जुड़ी चीजों के अलावा यहां देखने वाली जगहों में शानदार कला का नमूना इसलामिक सेंटर, 17वीं सदी की बनी हुस्कुरू मिस्किली (जामा मसजिद), 1906 में बना महल मुल्ली-आगी, जहां अब राष्ट्रपति का दफ्तर है और राष्ट्रीय संग्रहालय प्रमुख हैं।

आनंद के कई रूप

स्कूबा डाइविंग: मालदीव में चूंकि चारों तरफ नजर घुमाने पर पानी ही नजर आता है, इसलिए यहां की सारी गतिविधियां इसी से जुड़ी हैं। या तो आप इनका लुत्फ उठाएं या फिर आराम से अपनी कॉटेज में पसरे रहें। मालदीव का लगभग हर रिसॉर्ट अपने पास स्कूबा डाइविंग के इंतजाम रखता है। सीखने वालों के लिए यहां डाइविंग स्कूल और कोर्स भी हैं। पूरे सालभर डाइविंग बिना नागा चलती है। हर रिसॉर्ट के पास द्वीप के नीचे अपनी एक समुद्री दीवार (रीफ) होती है जिसके चलते तेज लहरों या हवाओं के दौरान भी डाइविंग में कोई बाधा नहीं आती।

अंडरवाटर फोटोग्राफी: डाइविंग करें तो इसमें भी हाथ जरूर आजमाएं। जानकारों का कहना है कि अंडरवाटर फोटोग्राफी के लिए यह दुनिया की बेहतरीन जगहों में से एक है। कोरल रीफ और मछलियों की इतनी किस्में शायद ही कहीं और हो। रही बात कैमरे की तो यहां के डाइविंग स्कूलों में अंडरवाटर कैमरे भी किराये पर मिल जाते हैं।

स्नोर्कलिंग: यह डाइविंग का मास्क और तैरने वाले पंजे लगाकर पानी की सतह के थोड़ा ही नीचे तैरना है। इसका मुख्य मकसद पानी के अंदर की जिंदगी से रूबरू होना है, खास तौर पर उन लोगों के लिए जिन्हें गहरे उतरने की इच्छा नहीं होती। इसके उपकरण भी ज्यादातर रिसॉर्ट में उपलब्ध होते हैं। यह अनुभव इसलिए भी बेहद शानदार है क्योंकि यहां के साफ पानी में आप पचास मीटर दूर तक अच्छे से देख सकते हैं।

सबमैरिन(पनडुब्बी): समुद्र की गहराई का मजा लेने का हक केवल डाइविंग व स्नोर्कलिंग करने वालों को ही नहीं है। मालदीव के रोमांच में हाल का इजाफा जर्मन पनडुब्बी का है जो हर किसी को पानी के नीचे की दुनिया दिखा सकती है- वह भी यार-दोस्तों के साथ एयरकंडीशंड माहौल में। यह दुनिया की सबसे गहरी उतरने वाली और सबसे बड़ी यात्री पनडुब्बी है जो समुद्र में सौ फुट नीचे उतरकर उस दुनिया से आपका परिचय करा सकती है जो अबतक केवल स्कूबा डाइवरों के लिए ही खुली थी। सौ फीसदी सुरक्षा वाला यह रोमांच दुनिया में केवल गिने-चुने स्थानों पर ही उपलब्ध है और मालदीव जाने पर इसका मौका चूकना ठीक न होगा।

सर्फिग: यह अनुभव मालदीव के लिए थोड़ा नया लेकिन तेजी से पांव जमाता हुआ है। अब तो यहां सर्फिग मुकाबले तक होने लगे हैं।

व्हेल व डॉल्फिन: अब यह बात बहुत कम ही लोगों को पता होगी कि मालदीव की गिनती व्हेल व डॉल्फिन के नजारे लेने के लिए दुनिया की पांच सर्वश्रेष्ठ जगहों में होती है। इन दोनों मछलियों की बीस किस्मों का ठिकाना मालदीव के समुद्र में है (यह संख्या इनकी कुल किस्मों की चौथाई है)। इनमें विशालकाय ब्लू व्हेल (दुनिया का सबसे बड़ा प्राणी) से लेकर बेहद छोटी लेकिन उतनी ही कलाबाज स्पिनर डॉल्फिन तक सब शामिल हैं।

स्पिनर डॉल्फिन यहां कई हजारों की संख्या में हैं। इन्हें देखना और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी को समझना भी अपने आपमें बेहद रोमांचक है। उनका रूटीन इतना तय है कि उन्हें एक जगह पर रोजाना निर्धारित समय पर देखा जा सकता है। इन डॉल्फिनों को इनके प्राकृतिक वातावरण में देखने का मालदीव से बेहतर स्थान नहीं हो सकता। ज्यादा करीब से देखना हो तो सफारी बोट पर क्रूज का भी इंतजाम यहां हर जगह है। यह भी एक यादगार अनुभव होगा। पर्यटन के अलावा मछलीपालन यहां के सबसे प्रमुख धंधों में से हैं। कई निर्जन द्वीपों का इस्तेमाल तो केवल मछलियां सुखाने के लिए किया जाता है। मालदीव की डिब्बाबंद मछलियां काफी पसंद की जाती हैं। आप मांसाहारी हैं तो इसे मालदीव की याद या दोस्तों के लिए तोहफे के तौर पर भी ले जा सकते हैं। हालांकि तोहफे के लिए मालदीव के प्राकृतिक फाइबर से बने मैट, जिन्हें यहां थुडुकुना कहा जाता है, भी उपयुक्त हैं। इसके अलावा लकड़ी की बनी छोटी पारंपरिक नावें-धोनियां भी बेहद आकर्षक होती हैं।

राजधानी माले का हवाई अड्डा शहर से परे एक अलग द्वीप पर है। यात्रियों को राजधानी ले जाने के लिए हवाईअड्डा द्वीप से दिन के समय हर पंद्रह मिनट में और आधी रात के बाद हर आंधे घंटे पर एक नौका राजधानी जाती है। जाने का इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं। इसका किराया तय है जो इस समय लगभग एक डॉलर प्रति व्यक्ति है।

पर्यटकों के लिए रिसॉर्ट राजधानी माले के अलावा कई अन्य द्वीपों पर हैं। इनमें से कई पर हवाईपट्टियां हैं जहां के लिए एयर टैक्सी उपलब्ध हो जाती है।

मालदीव आने के लिए पहले से वीजा की जरूरत नहीं होती। यहां आने के सभी स्थानों पर पहुंचते ही पर्यटकों को तीस दिन का फ्री वीजा दे दिया जाता है।

यहां का मौसम आम तौर पर गरम और उमसभरा होता है। सूरज देवता रोज चमकते हैं और औसत तापमान पूरे सालभर 32 से 29 डिग्री सेल्शियस के बीच रहता है। यहां का मौसम मुख्य रूप से मानसून पर ही निर्भर रहता है। लेकिन फरवरी साल का सबसे सूखा महीना होता है। अप्रैल के बाद से फिर बारिश का दौर शुरू हो जाता है। लेकिन भूमध्य रेखा के निकट होने के कारण यहां तूफान व चक्रवात शायद ही कभी आते हैं। यहां का समय भारतीय समय से आधा घंटा पीछे है।

भौगोलिक दृष्टि से यहां कई और भी अचंभे हैं। समुद्रतल से ऊंचाई के मामले में यह दुनिया के सबसे निचले इलाकों में से है और यहां जमीन की समुद्रतल से अधिकतम प्राकृतिक ऊंचाई महज 2.3 मीटर है (एवरेस्ट से 8845 मीटर कम)। यही वजह है कि दिसंबर 2004 में जब यहां सुनामी की लहरें पहुंची तो उनकी ऊंचाई मात्र 1.2 से 1.5 मीटर थी (बाकी दक्षिण एशिया में उठी 8-10 मीटर ऊंची लहरों के मुकाबले)। लेकिन इतनी छोटी लहरों में ही मालदीव का काफी हिस्सा पानी में समा गया और भारी नुकसान भी हुआ।

सामान्य सूती कपड़े यहां के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन माले और बाकी आबादी वाले द्वीपों पर महिलाओं के लिए थोड़े शालीन कपड़े पहनना ठीक रहेगा। वैसे तो पर्यटन से जुड़े लोग कई यूरोपीय भाषाएं जानते हैं लेकिन आम तौर पर अंग्रेजी यहां लोग समझ-बोल लेते हैं क्योंकि यहां साक्षरता की दर बहुत ज्यादा, लगभग 98 फीसदी है। रुफिया व लारी यहां की मुद्रा है। जैसे हमारे यहां एक रुपये में सौ पेसे होते हैं, उसी तरह यहां एक रुफिया (उच्चारण में रुपिया का अपभ्रंश प्रतीत होता है न?) में सौ लारी होते हैं। एक डॉलर इस समय लगभग 12 रुफिया के बराबर हैं। डॉलर ही यहां सबसे ज्यादा प्रचलित विदेशी मुद्रा है।

कैसे जाएं

राजधानी माले के लिए केरल में तिरुवनंतपुरम से सीधी उड़ान है। दिल्ली से कोलंबो होते हुए भी कुछ उड़ानें माले के लिए शुरू हुई हैं। कुछ अंतरराष्ट्रीय उड़ानें मुंबई होते हुए भी माले जाती हैं। किराया भी बहुत ज्यादा नहीं। तिरुवनंतपुरम से माले का एक व्यक्ति का इकोनॉमी क्लास का वापसी किराया लगभग साढ़े आठ हजार रुपये है। यह उड़ान महज 40 मिनट लेती है।

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