पहियों पर राजमहल

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संसार की दस लक्जरी यात्राओं में शुमार ‘पैलेस ऑन व्हील्स’ की यात्रा अपने नाम के अनुरूप पहियों पर घूमते राजमहल जैसी है और इसका हर यात्री राजा के समान। राजस्थानी संस्कृति की झलक दिखाती इस यात्रा में सैलानी एक हफ्ते के लिए बीते समय के वैभव को पूरी तरह अनुभव करते हैं। इस दौरान उन्हें राजस्थान के प्रमुख शहरों और उद्यानों के अलावा ताजनगरी आगरा की सैर भी कराई जाती है।

इतिहास शाही रेलगाड़ी का

देश में रेल तंत्र के उदय के बाद राजस्थान के बड़े घरानों ने रेल यात्रा को अपने शाही अंदाज में ढालने का प्रयास किया। उन्होंने सभी सुविधाओं से युक्त निजी सैलून बनवाए। करीब 24-25 वर्ष पूर्व राजस्थान पर्यटन तथा रेल मंत्रालय का ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने एक शाही सफर की योजना बनाई। अलग-अलग रियासतों के 13 सैलून इकट्ठे कर उन्हें फिर से सफर योग्य बनाया गया। सभी सुविधाओं से युक्त इन सैलूनों को जोड़ एक ट्रेन बनी, जिसका नाम ‘पैलेस ऑन व्हील्स’ रखा गया। जल्दी ही यह रेलगाड़ी विदेशी यात्रियों को अधिक आकर्षित करने लगी। इसकी बढ़ती प्रसिद्धि को ध्यान में रखकर नए सैलून बनवाए गए। सैलूनों की राजसी शैली में कुछ और सुविधाएं जोड़कर उन्हें वातानुकूलित बनाया गया। सैलूनों के नाम राजस्थान की रियासतों पर रखे गए और संबंधित रियासत की सांस्कृतिक झलक को ही आंतरिक सज्जा में दिखाने का पूरा प्रयास किया गया। बाद इसमें रेस्टोरेंट तथा आधुनिक पैंट्री कार की सुविधा भी जोड़ दी गई।

आरंभ यात्रा का

दिल्ली छावनी स्टेशन पर विशेष स्वागत कक्ष में प्रवेश करते ही संगीत की स्वर लहरियों के बीच राजस्थानी वेशभूषा में सजी युवतियों ने तिलक लगाकर, फूलमाला पहनाकर हमारा स्वागत किया। सैलून के द्वार पर अटेंडेंट ने सलाम कर केबिन तक पहुंचाया। सैलून में प्रवेश करते ही मिनी लाउंज है। हर सैलून में चार केबिन हैं। हर सैलून में एक कैप्टन और अटेंडेंट हमेशा तैयार रहते हैं। ट्रेन चली तो लग ही नहीं रहा था कि हम रेल में यात्रा कर रहे हैं। लगता था किसी महाराजा की आरामगाह में बैठे हैं। शाही सवारी के अनोखे संसार में हम ऐसे गुम थे कि पता ही नहीं चला कि कब रात के भोजन का वक्त हो गया। अटेंडेंट ने आग्रह किया तो डाइनिंग हाल की ओर चले। मध्य की बोगी में स्थित महाराजा व महारानी नामक रेस्तरांओं की सजावट किसी पांच सितारा होटल के छोटे रेस्तरां जैसी थी। हर रेस्तरां में 40 लोगों के बैठने की व्यवस्था है।

गुलाबी शहर में

सुबह आंख खुली तो शाही गाड़ी जयपुर स्टेशन पर खड़ी थी। मिनी लाउंज में हमने ब्रेकफास्ट किया। जयपुर स्टेशन पर भी यात्रियों  का पारंपरिक स्वागत हुआ। वहां से हमें वातानुकूलित कोच में बैठाकर साइट सीन के लिए ले जाया गया। हवामहल और आमेर फोर्ट होते हुए हम रामबाग पैलेस पहुंचे। यह महल एक हेरीटेज होटल का रूप ले चुका है। दोपहर का भोजन हमें इसी पैलेस में कराया गया।

शहर सा बसा है

जयपुर से प्रस्थान के कुछ देर बाद हम मध्य की बोगी में बनी लाउंज में आ गए। किसी महल के दीवानेखास जैसी इस लाउंज में एक सुंदर बार भी है। अगले दिन जैसलमेर पहुंचने पर हमने राजस्थान की स्थापत्य कला के साथ स्थानीय जीवन को भी करीब से देखा। दोपहर बाद हम कोच द्वारा शहर से करीब तीस किलोमीटर दूर रेगिस्तान का वास्तविक रूप देखने पहुंचे। घूमते-घूमते शाम होने लगी तो हम गोरवंद पैलेस आए। वहां राजस्थानी लोकरंग से सजी सांस्कृतिक संध्या हमारी प्रतीक्षा में थी। रात्रिभोज भी हमने वहीं किया।

पक्षियों के कलरव में

यात्रा के सातवें दिन भरतपुर स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान की सैर कराई जाती है। भरतपुर से पैलेस ऑन व्हील्स उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ती है। क्योंकि यात्रा की रूपरेखा में इस राज्य में स्थित विश्व धरोहर स्तर की दो ऐतिहासिक इमारतें भी शामिल हैं। इनमें एक है फतेहपुर सीकरी और दूसरा ताजमहल। हम फतेहपुर सीकरी देखकर वापस आए तो दोपहर के भोजन का समय हो गया था। यात्रा के आरंभ में हमने सोचा था कि चलती रेलगाड़ी में रोज लगभग एक जैसा ही भोजन होगा। लेकिन यात्रा के दूसरे दिन ही हमें एहसास हो गया कि शाही यात्रा में भोजन का अंदाज भी शाही ही है। रेस्तरां की टेबल पर रखे मेनू कार्ड में रोज नए व्यंजनों के नाम होते थे। दौड़ती ट्रेन में अंतरराष्ट्रीय स्तर की क्वालिटी का भोजन और उसमें इतनी विविधता उपलब्ध कराने के लिए आधुनिक उपकरणों से लैस एक पैंट्री कार है। इसमें स्वच्छता और भोजन का स्तर बनाए रखने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित शेफ नियुक्त हैं। प्रशिक्षित वेटरों द्वारा भोजन भी बहुत सलीके से परोसा जाता है। यात्रियों को असुविधा न हो इसलिए भोजन के समय रेलगाड़ी की रफ्तार भी कुछ कम रहती है।

ताज के शहर में

सफर का आखिरी ठहराव है ताजमहल का नगर आगरा। राजस्थान के इतिहास और परंपराओं से साक्षात्कार कराता यह अद्भुत सफर हर सैलानी के लिए जीवन की एक यादगार बन जाता है। राजसी सफर में सैलानी उस दुनिया को लगभग भूल से जाते हैं, जहां से सफर शुरू किया था। इसलिए वापस उस दुनिया में कदम रखते ही ऐसा लगता है जैसे स्वप्नलोक से वापस धरती पर लौटे हों।

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