अमेरिकी सैलानियों को लुभा रहा है हिंदुस्तान

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अमेरिका की रुचि केवल भारत से परमाणु डील करने में ही नहीं है, वहां के सैलानी भी भारत को काफी पसंद कर रहे हैं। आंकड़े कहते हैं कि पिछले साल भारत आने वाले विदेशी सैलानियों में अमेरिकियों की संख्या सबसे ज्यादा रही। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार कुल पचास लाख 81 हजार से ज्यादा विदेशी पर्यटक पिछले साल भारत आए। इनमें अमेरिका से आने वाले सैलानियों की संख्या सबसे ज्यादा लगभग आठ लाख थी। हालांकि उससे पिछले साल ब्रिटिश सैलानी सबसे ज्यादा आए थे 7.34 लाख। पिछले साल यह संख्या भी बढ़ी लेकिन 7.96 लाख तक ही पहुंची। अमेरिकी आगे निकल कर 7.99 लाख तक पहुंच गए। लेकिन ज्यादा रोचक नाम तीसरे नंबर वाले देश का है-बांग्लादेश। हालांकि वहां से आने वाले सैलानियों की संख्या 2006 में 4.84 लाख से घटकर 4.80 लाख हो गई लेकिन भारत के शीर्ष दस सैलानी सृजन बाजारों में उसका तीसरा स्थान बरकरार रहा।

कनाडा और फ्रांस से आने वाले पर्यटकों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। कनाडा के सैलानियों की संख्या 1.77 लाख से बढ़कर 2.08 लाख हो गई वहीं फ्रांसीसी सैलानी भी 1.75 लाख से बढ़कर 2.04 लाख हो गए। श्रीलंका (2.04 लाख), जर्मनी (1.84 लाख), जापान (1.46 लाख), आस्ट्रेलिया (1.36 लाख) और मलेशिया (1.13) लाख शीर्ष दस देशों में

होटल नहीं हैं तो कैंप चलेंगे

भारत में आने वाले सैलानियों की संख्या में तो लगातार इजाफा हो रहा है लेकिन उस तेजी से होटल के कमरों की संख्या नहीं बढ़ रही है। होटलों की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने कैंपिंग साइट स्थापित करने संबंधी दिशानिर्देश बनाए हैं। पूरे देशभर में होटलों के कमरों की संख्या में खासा असंतुलन है। मांग व उपलब्धता में अंतर का नतीजा यह है कि कमरों की दरों में इजाफा हो रहा है। लिहाजा इस प्रतिस्पर्धी बाजार में कमरों की दरों के आधार पर एक जगह दूसरी जगह को पछाड़ दे रही है। होटल महंगे हैं तो मध्यवर्गीय सैलानी उन जगहों पर कम जाते हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने टेंटों वाली कैंपसाइटों के लिए दो तरह के दिशानिर्देश तय किए हैं। कैंपसाइटों के विकास के दिशानिर्देश दरअसल सलाहों के रूप में हैं और राज्य सरकारों को कैंपसाइटों के विकास को प्रोत्साहन व बढ़ावा देने का सुझाव देते हैं। तय दिशानिर्देश बने होने से कैंपों में मिलने वाली सुविधाओं के तय मानक बन सकेंगे। कैंपसाइटों का विकास इसलिए भी जरूरी है कि भारत में रोमांचक पर्यटन में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। सैलानी ऐसी जगहों पर जा रहे हैं जहां होटल बन नहीं सकते लेकिन कैंप हों तो लोग अवश्य ज्यादा जाना पसंद करेंगे। दिशानिर्देशों के अनुसार कैंपसाइटों को पांच श्रेणियों में बांटा जा सकता है- वाइल्डलाइफ, एडवेंचर, धार्मिक पर्यटन, नए स्थान और अंतरराष्ट्रीय महत्व वाले स्थान। कैंप के स्थान और प्रकृति को देखते हुए टेंटों की संख्या 6 से 50 तक हो सकती है। कैंपों के ढांचे अर्धनिर्मित हों और उनमें टॉयलेट, रसोई व स्टोर भी हों। निशानिर्देशों में उपयुक्त सुविधाओं वाला टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर बनाने की भी बात है। साथ ही सुरक्षा व साफ-सफाई के भी प्रावधान निर्धारित हैं। कूड़ा हटाने का तरीका हो, प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल हो, पर्यावरण अनुकूल सामग्री लगी हो, वैकल्पिक ऊर्जा पर जोर हो, अग्निशमन उपाय हों और कैंप की सुरक्षा पर भी ध्यान देने की बात दिशानिर्देशों में शामिल है। कैंप साइटों के लिए इस तरह के दिशानिर्देश पहली बार आए हैं। इनका फायदा खास तौर पर इन पहाड़ी व दुर्गम इलाकों में होगा जहां पक्के होटल बनाना भौगोलिक दृष्टि से संभव नहीं है। कैंप साइटों के रूप में रुकने की जगह मिलने से लोग ऐसी जगहों पर जाने को प्रोत्साहित होंगे। शहरी इलाकों में भी अगर इस तरह की कैंपसाइट तैयार हो सकें तो होटलों के कमरों पर दबाव बढ़ेगा, दरें नीचे आएंगी और शायद भारत में देशी-विदेशी सैलानियों के लिए सफर सुहाना हो सकेगा।

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