दीव समुद्र से घिरा एक स्वर्ग

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बिखरी हुई चांदी जैसी चमकती रेत, उसे बार-बार छूकर जाती सागर की लहरें, दूर क्षितिज तक सागर पर झुका नीला आकाश, तट के दूसरी ओर समुद्री हवाओं से लहराते ताड़ के दरख्त.. सब कुछ ऐसा कि जो भी देखे देखता रह जाए। कौन सी जगह है यह, जहां सब कुछ नया सा नजर आ रहा है? जी नहीं, यह गोवा नहीं है.. अरे जनाब कोवलम भी नहीं.. ना ना पुरी का बीच भी नहीं है। चलिए बता ही देते हैं, यह खुशनुमा जगह है ‘दीव’। खूबसूरती की तो जैसे यहां कोई सीमा ही नहीं। भारत की विस्तृत तटरेखा पर सजे कई तटों को देखने के बाद सैर-सपाटे के लिए हमें किसी नई जगह की तलाश थी। उस समय दीव के बारे में सुना तो बस वहां जाने के लिए दिल बेचैन हो उठा। मुख्य भूमि से हट कर अरब सागर में एक द्वीप के रूप में बसा यह पर्यटन स्थल गुजरात के एक छोर पर स्थित है। इसलिए हमने इसके साथ ही गुजरात के कुछ अन्य स्थानों की भी यात्रा का कार्यक्रम बना लिया।

दीव की सीमा में

मंदिरों की नगरी सोमनाथ घूमकर जब हम बस स्टैंड पहुंचे तो मालूम हुआ कि यहां से दीव के लिए सीधी बस 4 घंटे बाद मिलेगी। लेकिन हमें तो दीव पहुंचने की जल्दी थी। पूछने पर मालूम हुआ कि अगर हम सोमनाथ से करीब 60 किलोमीटर दूर ‘कोडियार’ पहुंच जाएं तो वहां से दीव के लिए बसों की नियमित सेवाएं हैं। फिर क्या था, थोड़ी ही देर में दूसरी से डेढ़ घंटे में हम कोडियार पहुंच गए। वहां से 15 मिनट बाद ही हमें दीव की बस मिल गई।

कोडियार और मार्ग के अन्य छोटे शहरों को पीछे छोड़ती बस किसी नदी तट के साथ-साथ चलती सड़क पर दौड़ने लगी। काफी दूर चलने के बाद बस दाई ओर मुड़ी और कुछ देर बाद ही फिर दाई ओर मुड़ी। अब हम उस सड़क के समानांतर चल रहे थे। मानो नदी के दूसरे तट पर चल रहे हों। कुछ ही देर बाद एक भव्य द्वार नजर आया। वह केंद्रशासित प्रदेश ‘दीव’ का प्रवेशद्वार था। वहां बना बैरियर पार कर हमारी बस ने दीव की सीमा में प्रवेश किया और कुछ देर बाद ही हम दीव टाउन में थे।

जालंधर का राज्य

यह छोटा सा द्वीप गुजरात के काठियावाड़  तटीय क्षेत्र के निकट मुख्यभूमि से जरा सा हट कर है। उत्तर दिशा में गुजरात के जूनागढ़ और अमरेली जिलों की धरती है। बा़की तीन तऱफ समुद्र से घिरा है। यह द्वीप दो पुलों के जरिये मुख्यभूमि से जुड़ा है। माना जाता है पौराणिक काल में यहां जालंधर दैत्य का राज था, जिसका अंत भगवान विष्णु ने किया था।  वनवास के दौरान पांडव भी यहां कुछ दिन रुके थे। द्वारिका नगरी बसाए जाने के बाद यह क्षेत्र भगवान कृष्ण के प्रभाव में भी रहा। ईसा से 322-320 वर्ष पूर्व यह मौर्यवंश के आधिपत्य में था। बाद में यहां गुप्त व चालुक्य राजाओं का भी प्रभाव रहा। दीव ने बाहरी आक्रमण भी कई बार झेले। 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली यहां व्यापार के लिए आए। धीरे-धीरे उन्होंने दीव को उपनिवेश बना लिया। दिसंबर 1961 में गोवा और दमन के साथ दीव को भी आजाद करा लिया गया। लगभग 450 वर्षो तक पुर्तगालियों के प्रभाव में रह चुके इस छोटे से द्वीप पर आज भी पुर्तगाली संस्कृति के चिन्ह दिखते हैं।

विस्तार काठियावाड़ का

दीव में हमें सौराष्ट्र की जीवनशैली का पूरा असर देखने को मिला। दरअसल पुर्तगालियों के कब़्जे से पूर्व यह द्वीप गुजरात का ही हिस्सा था। दीव को काठियावाड़ अंचल का विस्तार माना जाता है। यहां के पर्व और उत्सवों में यह बात साफ देखी जा सकती है। प्राकृतिक सौंदर्य, शानदार बीच और हैरीटेज बिल्डिंगों के कारण यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। हालांकि साफ-सुथरे मार्गो वाले छोटे से दीव कस्बे में घूमने की जगहें कम हैं, पर यही बात इसकी खासियत बन जाती है। यहां थका देने वाले साइटसीन जैसा कुछ नहीं है। इस तरह भागदौड़ भरी थकाऊ दिनचर्या से निजात पाने के लिए आए सैलानियों के लिए तो यह स्थल आदर्श सैरगाह है। यही सोच कर हम भी दीव आए थे।

सागर से घिरा किला

दीव टाउन में आकर्षण का मुख्य केंद्र यहां का किला है। दीव फोर्ट तीन दिशाओं में समुद्र से घिरा है तो चौथी दिशा में एक छोटी सी नहर इसकी सुरक्षा करती है। इसी दिशा में किले का प्रवेशद्वार है। इस किले का निर्माण गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने पुर्तगालियों से संधि के तहत मु़गल आक्रमण से बचाव के लिए 16वीं सदी में करवाया था। उस दौर में किले की प्राचीर पर तैनात की गई कई तोपें आज भी देखी जा सकती हैं। हालांकि वक्त के थपेड़ों से धीरे-धीरे उनका क्षय होता जा रहा है। दीव फोर्ट से समुद्र का नजारा देखते ही बनता है। किले के सामने समुद्र के अंदर की दिशा वाले हिस्से में किले जैसी एक और छोटी सी इमारत है। इसे पनीकोटा कहते हैं। क्रीक के मुहाने पर बने होने के नाते इसे दूर से ही देखा जा सकता है। यहां एक चैपल भी है, जो ‘अॅवर लेडी ऑफ सी’ को समर्पित है। स्थानीय लोग पनीकोटा को कालापानी जेल बताते हैं। किले से कुछ दूर ही फेयरी जेट्टी है। जहां से बोट में बैठ कर खाड़ी की सैर की जा सकती है।

घरों पर भड़कीले रंग

दीव टाउन में हमें ज्यादातर आधुनिक घर देखने को मिले। आजकल यहां घरों पर बेहद भड़कीले रंग करने का चलन है। एक के बाद दूसरे घर पर एकदम अलग रंग ऩजर आता है। जो देखने में अन्य शहरों से भिन्न लगते हैं। इनके बीच की सड़कों से होते हुए हम सेंट पॉल चर्च पहुंचे। चर्च की इमारत आज भी आलीशान लगती है। इसका निर्माण 1610 में पूर्ण हुआ था। सेंट् पॉल चर्च ‘अॅवर लेडी ऑफ इमेक्यूलेट कंसेप्शन’ को समर्पित है। यहां से कुछ दूर पुराने सेंट थॉमस चर्च की इमारत है। यह इमारत अब एक संग्रहालय में तब्दील कर दी गई है। यहां ईसाई धर्म से संबंधित अनेक प्राचीन मूर्तियां, कुछ पुराने शिलालेख, काष्ठ कला के सुंदर नमूने आदि संग्रहीत हैं।

जहां से चला चक्र

वहां से हम समुद्र के समानांतर मार्ग पर आ गए। मार्ग पर सबसे पहले जालंधर बीच है। इस शांत बीच के पास ही एक पहाड़ी पर जालंधर मंदिर और देवी चंद्रिका मंदिर स्थित हैं। जालंधर ने अंतिम समय में भगवान से यहीं क्षमाप्रार्थना की थी। आगे चलकर गाइड ने हमें चक्रतीर्थ बीच पर रुकने को कहा। हमने पहली बार इतना शांत बीच देखा था। जहां लहरों की हलचल और लहरों के शोर के अलावा मानो कुछ नहीं था। दो-चार सैलानी एक-दूसरे के लिए अनजान और एक दूसरे से का़फी दूर रेत पर लेटे हुए थे। तट के समीप लहराते नारियल के पेड़ और कुछ दूरी पर छोटी-छोटी पहाडि़यां इस तट की शोभा बढ़ा रहे थे। चक्रतीर्थ बीच के एकांत सौदंर्य का आनंद लेने के लिए हम भी कुछ देर वहां रेत पर टहलते रहे। कहते हैं कि जालंधर दैत्य का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने यहीं से चक्र चलाया था। इसीलिए इसका नाम चक्रतीर्थ पड़ गया। वहां से कुछ दूर सनसेट पॉइंट है। शाम के समय यहां से सूर्यास्त का मंजर देखते ही बनता है।

समुद्र के किनारे ही भारतीय नौसेना के एक युद्धपोत ‘आईएनएस खुकरी’ का स्मारक है। यह 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की एक पनडुब्बी से छोडे़ गए टारपीडो के चलते नष्ट हो गया था। उसी स्मृति में एक पहाड़ी पर यह स्मारक बनाया गया। इसके सामने तट पर एक मुक्ताकाशी मंच है। जहां अकसर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

गुफा में शिवलिंग

दीव के फुदम गांव में समुद्र के किनारे एक झुकी हुई चट्टान के नीचे छोटी सी गुफा है। मान्यता है कि वनवास के दौरान भटकते हुए पांडव इस क्षेत्र में भी कुछ समय रुके थे। इस गुफा के अंदर उन्होंने पांच शिवलिंग स्थापित किए थे। वे शिवलिंग आज भी वहां उपस्थित हैं। यह स्थान गंगेश्वर मंदिर कहलाता है। समुद्र का जलस्तर बढ़ने पर ये शिवलिंग अकसर जलमग्न हो जाते हैं। मानो समुद्र श्रद्धापूर्वक भगवान शिव का अभिषेक करता हो। गंगेश्वर मंदिर यहां के लोगों की आस्था का केंद्र है। हमने भी वहां पंचलिंगों के दर्शन किए। वहां से हम सीधे नागवा बीच की ओर चल दिए। यह बीच दीव टाउन से 9 किलोमीटर दूर है। यह मार्ग नारियल जैसे दिखने वाले वृक्षों से घिरा है। जिनके ऊपरी हिस्से में हरी-भरी नई पत्तियां दिख रही थीं और नीचे सूखी पत्तियां लटकी थीं। पूरे मार्ग में ऐसे पेड़ों की लंबी कतार थी। गाइड ने बताया इन्हें ‘पॉम होका ट्री’ कहते हैं। इसी मार्ग में दीव का छोटा सा एयरपोर्ट भी है। यह एयरपोर्ट पर्यटकों के अलावा दीव के प्रवासी भारतीयों की सुविधा के लिए भी है। उपनिवेश काल से ही दीव के लोग बड़ी संख्या में पश्चिमी देशों में जा बसे थे। आज वहां के अधिकतर परिवारों के संपर्क विदेशों में हैं।

नागवा बीच की रौनक

कुछ देर बाद हम नागवा बीच पहुंच गए। यह एक विशाल अर्धवृत्ताकार समुद्रतट है। इस बीच की खूबसूरती देखते ही बनती है। यही कारण है कि वहां अच्छी-खासी रौनक थी। यहां भारतीय और विदेशी पर्यटकों के अलावा स्थानीय लोग भी खूब आते हैं। यहां कई अच्छे होटल और रेसॉर्ट भी हैं। समुद्रस्नान की दृष्टि से यह एक सुरक्षित बीच है। यहां स्पीड बोट में नौकायन और वाटर स्कूटर आदि का रोमांच भी लिया जा सकता है। बीच पर कई रेस्टोरेंट आदि भी हैं। हम भी का़फी देर नागवा बीच की रौनक का हिस्सा बने समुद्री नजारे निहारते रहे। दीव में एक और सुंदर समुद्रतट है। घोघला बीच नाम का यह तट घोघला गांव का तट है। दरअसल घोघला गांव दीव के मेन लैंड वाले हिस्से में है। इसलिए दीव टाउन में आने के बाद सैलानी उस बीच पर कम ही जाते हैं, लेकिन इस सा़फ-सुथरे तट पर गुजरात से आने वाले सैलानी का़फी तादाद में आते हैं।

मुक्ति का उत्सव

दीव घूमने के लिए दीव फेस्टिवल का मौ़का सबसे उपयुक्त होगा। तीन दिवसीय यह उत्सव 19 दिसंबर को दीव मुक्ति दिवस पर आरंभ होता है। उस समय यहां दीव की बहुजातीय संस्कृति की अनुपम झांकी देखने को मिलती है। गुजराती संस्कृति से अधिक प्रभावित होने के कारण दीव के लोगों का पसंदीदा लोकनृत्य गरबा है। इसके साथ ही उस आयोजन में पुर्तगाली लोकनृत्य मांडो, वीरा आदि भी पर्यटकों को प्रभावित करते हैं। संपूर्ण गुजरात की तरह नवरात्रि पर्व यहां भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। कुछ भी हो दीव आने वाले सैलानियों को मुग्ध करने के लिए इस छोटी सी द्वीपीय सैरगाह में बहुत कुछ है। सबसे बड़ी बात है कि यह स्थान अनछुआ सा प्रतीत होता है। यहां घूमने के बाद लगता है यह सच है।

कहां ठहरें

डीलक्स होटल्स : राधिका बीच रेसार्ट, होटल कोहीनूर, होटल खुशी, होटल सी व्यू, होटल सम्राट, होटल आलीशान

बजट होटल्स : टूरिस्ट कॉटेज, होटल आशियाना, होटल गंगेश्वर, होटल किनारा, नीलेश गेस्ट हाउस, पूनम गेस्ट हाउस, होटल प्रेमालय

खास जगह की आम बातें

कब जाएं : मानसून के मौसम को छोड़ कभी भी दीव जाया जा सकता है। वैसे यहां की जलवायु साल भर सुहानी रहती है। गर्मी के मौसम में यहां का तापमान 25 से 36 डिग्री के मध्य रहता है तो सर्दियों में यह 20 से 26 डिग्री तक रहता है। वैसे यहां पर्यटकों का आना-जाना नवंबर से फरवरी के बीच सबसे ज्यादा होता है।

कैसे जाएं : हवाई मार्ग से दीव जाने के लिए मुंबई से नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं। रेल मार्ग से आना हो तो देलवाड़ा नामक स्टेशन दीव का निकटतम स्टेशन है। लंबी दूरी से आने वाले सैलानी वेरावल, जूनागढ़ या राजकोट तक रेल मार्ग से आकर वहां से बस या टैक्सी के जरिये जाते हैं। सड़क मार्ग से आना हो तो दीव के लिए द्वारका, वेरावल, सोमनाथ, भावनगर, राजकोट और अहमदाबाद से नियमित बस सेवाएं हैं। उना नामक स्थान से बस बदल कर पहुंचना और सुगम हो जाता है। दीव एक छोटी सी सैरगाह है, इसलिए स्थानीय भ्रमण के लिए ऑटोरिक्शा बेहतर साधन है।

भाषा : दीव में भाषा की कोई समस्या नहीं है। वहां गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी भाषाएं बोली जाती हैं। पुर्तगाली भाषा भी वहां प्रचलन में है।

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