मीनाक्षी मंदिर: आस्था और कलात्मक सौंदर्य का संगम

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दक्षिण भारत की द्रविड़ स्थापत्य कला और मूर्ति कला का अनुपम उदाहरण मीनाक्षी मंदिर आज विश्व भर में प्रसिद्ध है। आज जब संसार के आधुनिक आश्चर्यो को पहचानने के प्रयास किए जा रहे हैं, तब इस मंदिर के कलात्मक सौंदर्य से प्रभावित लोग मीनाक्षी मंदिर का नाम भी इन आश्चर्यो की गिनती में लाना चाहते हैं। इस बात से सहज ही इस मंदिर की भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है। मीनाक्षी मंदिर के उद्भव के बारे में कुछ दंतकथाएं प्रचलित है।

एक कथा के अनुसार मंदिर का महत्व मदुरै नगरी से ही जुड़ा है। किसी समय देवराज इंद्र ब्रह्महत्या के पाप के बोझ से दुखी होकर भटक रहे थे। उन्हें कहीं शांति नहीं मिली। तभी वह वैगई नदी के तट पर कंदब वृक्षों के वन में पहुंचे। वहां एक स्वयंभू लिंग दिखाई दिया। समीप के तालाब से कमल पुष्प लाकर उन्होंने पूजा की तो मन में असीम शांति मिली। वह देवलोक को लौट गए। पर इंद्र द्वारा पूजा की बात विदित होने पर स्थानीय लोगों ने पूजा करना आरंभ कर दिया। कालांतर में मणवूर के राजा कुलशेखर पॉड्य को उस पूजनीय लिंग के महत्व का पता चला तब उन्होंने भी वैगई नदी के तट पर आकर लिंग की पूजा की और वहां एक मंदिर का निर्माण कराया। वहीं उन्होंने मधुरै नगर बसाया जो कालांतर में मदुरै के नाम से जाना जाने लगा। कुलशेखर के बाद मलयध्वज राजा बने। किंतु उनके यहां कोई संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसकी पवित्र अग्नि से देवी भगवती ने स्वयं उनकी कन्या के रूप में अवतार लिया। विशाल मीन जैसे नयनों वाली उस कन्या का नाम उन्होंने मीनाक्षी रखा। देवी का विवाह तो भगवान शिव से ही होना था। भगवान शिव सुदंरेश्वर के रूप में कैलाश पर्वत से मदुरै पधारे और मीनाक्षी देवी से उनका विवाह हुआ। जिस स्थान पर विवाह संपन्न हुआ था, यह मंदिर उसी स्थान पर है।

सुंदरेश्वर मंदिर

मीनाक्षी मंदिर का पूरा नाम मीनाक्षी ‘सुंदरेश्वर मंदिर’ है। दरअसल एक ही परिसर में मीनाक्षी अम्मन मंदिर के साथ ही विशाल सुंदरेश्वर मंदिर भी है। इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण इसके ऊंचे-ऊंचे गोपुरम हैं। मंदिर में कुल बारह गोपुरम है। चारों दिशाओं में स्थित द्वारों के गोपुरम काफी बड़े है। अंदर के द्वारों पर स्थित गोपुरम आकार में छोटे है। सभी गोपुरम कलात्मक रंगीन मूर्तियों से अलंकृत हैं। इनमें दक्षिण का गोपुरम सबसे ऊंचा है, जिसकी ऊंचाई 160 फुट है। पूर्वी दिशा से प्रवेश करने पर सामने एक छोटा सा बाजार है। यहां पूजा पाठ की सामग्री मिलती है। यहीं दाई ओर सहस्त्र स्तंभ मंडप है, हालांकि इसमें 905 स्तंभ हैं। इनकी कलात्मकता दर्शनीय है। सभी स्तंभों पर मनमोहक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मंडप के ठीक सामने नटराज प्रतिमा स्थापित है। यहां एक संग्रहालय है जो दिन भर खुला रहता है। यह संग्रहालय तमिलनाडु की प्राचीन कला का समृद्ध भंडार है। यहां कुछ संगीतमय स्तंभ भी है। पूर्वी दिशा में स्थित एक अन्य द्वार से प्रवेश करने पर अष्टशक्ति मंडप है। यहां पर देवी के अष्टरूप उत्कीर्ण हैं। यहां मीनाक्षी विवाह के कुछ दृश्य अंकित हैं। समीप ही मीनाक्षी मंडप है जिसमें एक सौ दस स्तंभ है। यहां पीतल के 1008 दीपों की श्रृंखला देखने योग्य है।

स्वर्णकाल सरोवर

दक्षिणी गोपुरम से प्रवेश करें तो दाई ओर एक सरोवर है। इसे स्वर्णकाल सरोवर कहते हैं। सरोवर के मध्य में एक स्वर्णकमल बना है। कहते हैं कि इंद्र ने स्वयंभू लिंग पूजन के लिए जिस सरोवर से कमल लिए थे वह इसी स्थान पर था। सरोवर के सामने किलिक्कूडू मंडप है। यहां से दर्शनार्थी मीनाक्षी देवी के मंदिर में प्रवेश करते हैं। गर्भ गृह में देवी की अत्यंत मनोहारी श्यामवर्णी प्रतिमा विराजमान है। गर्भगृह के बाहर भी अनेक महत्वपूर्ण मूर्तियां अवस्थित हैं। मीनाक्षी मंदिर के उत्तर दिशा में सुंदरेश्वर मंदिर है। उस ओर आगे बढ़ने पर पहले विनायक प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यह प्रतिमा आठ फुट ऊंची है। सुदंरेश्वर मंदिर में कम्बत्तडि़ मंडप में विष्णु भगवान के दशावतार रूपों का और मीनाक्षी विवाह का मोहक अंकन है। मंदिर के सामने नवग्रह प्रतिमा भी अवस्थित है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव सुंदरेश्वर रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह के बाहर दुर्गा लक्ष्मी सिद्धि सरस्वती काशी विश्वनाथ और नयनार मूर्तियां भी है। दोनों ही मंदिरों में गर्भगृह के सामने स्वर्णध्वज स्तंभ स्थापित है। मंदिरों के शिखर भी स्वर्णमंडित हैं। उत्तर दिशा के प्रवेश द्वार पर बने गोपुरम में मूर्तियों की संख्या कम हैं, फिर भी उसकी भव्यता में जरा भी कमी नहीं।

संगीतमय स्तंभ

इस गोपुरम के निकट पांच संगीतमय स्तंभ हैं जिनमें ग्रेनाइट के एक ही शिलाखंड से बाइस पतले स्तंभ इस तरह तराश कर बनाए गए हैं कि प्रत्येक से अलग ही ध्वनि सुनाई पड़ती है। इस प्रकार की अनेकों विशेषताओं के कारण ही मीनाक्षी मंदिर धर्मावलंबियों के साथ ही विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। लगभग 65000 वर्गमीटर के दायरे में बने इस मंदिर का निर्माण सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आरंभ हुआ था। इसको बनने में 120 वर्ष लगे थे। विभिन्न त्योहारों व उत्सवों के अवसर पर तो मीनाक्षी मंदिर में भक्तों का तांता ही लग जाता है। इनमें सबसे प्रमुख उत्सव चैत्र उत्सव है। इस दिन ‘मीनाक्षी-सुंदरेश्वर’ विवाह को एक महोत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है। मीनाक्षी मंदिर के कारण ही मदुरै शहर को पूर्व का एथेन्स भी कहा जाता है। मंदिर का नाम संसार के सात आश्चर्यो में शामिल हो या न हो, किंतु यह हमारे देश के आश्चर्यो में तो अवश्य गिना जाएगा। चेन्नई से लगभग 460 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मदुरै आसपास के अनेक शहरों से बस मार्ग द्वारा जुड़ा है। देश के अनेक शहरों से मदुरै के लिए सीधी रेल सेवा भी है। ठहरने के लिए यहां पर अनेक होटल व धर्मशालाएं हैं।

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