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कल यानी 2 सितम्बर को कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन जन्माष्टमी मनाई जा रही है. जन्माष्टमी के त्यौहार में भगवान विष्णु की, श्री कृष्ण के रूप में, उनकी जयन्ती के अवसर पर प्रार्थना की जाती है. हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार कृष्ण का जन्म, मथुरा के असुर राजा कंस का अंत करने के लिए हुआ था. कृष्ण ने ही संसार को “गीता” का ज्ञान भी दिया जो हर इंसान को भय मुक्त रहने का मंत्र देती है. इस उत्सव में कृष्ण के जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला की जाती है.
जन्माष्टमी वैसे तो पूरी भारत में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है लेकिन कृष्ण के अपने घर यानी मथुरा में इसकी उमंग का रंग देखते ही बनता है. यहां का जन्माष्टमी उत्सव इतना प्रसिद्ध है कि विदेशों से लोग खास इसे देखने आते हैं. मथुरा में ही भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर मंदिर है जहां कृष्ण भगवान ने द्वापर युग में जन्म लिया था. इसके साथ ही जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में मथुरा में गौरांग लीला और रामलीला होती है और ठाकुरजी के नए वस्त्रों को तैयार किया जाता है. मान्यता है कि ठाकुर जी का श्रृंगार सभी देवों से अदभुत होता है.
मथुरा में इस दिन इतनी भीड़ होती है कि प्रशासन को काबू करने के लिए पुलिस बल का भी प्रयोग करना पडता है.
जन्माष्टमी भारत के हर हिस्से में मनाई जाती है. मथुरा के अलावा मुबंई की जन्माष्टमी भी बहुत लोकप्रिय है. महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दौरान मिट्टी की मटकियों में दही व मक्खन डालकर उन्हें चुराने की कोशिशों करने का(जैसा कृष्ण अपने बचपन में करते थे) उल्लासपूर्ण अभिनय किया जाता है. इन वस्तुओं से भरा एक मटका जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्तत: इसे फोड़ डालते हैं.
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्ररूप में हुआ था. ऐसी मान्यता है कि जन्माष्टमी का सफल पूजन करने से मनुष्य का कल्याण होता ही है. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अर्द्धरात्रि में हुआ था इसलिए इस दिन सुबह से लेकर रात्रि तक श्रीकृष्ण भक्ति में हर कोई डूब जाता है. इसी पवित्र तिथि पर बताई जा रही है भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित व्रत और पूजा की सरलतम विधि. आप भी भगवान की पूजा करें और ध्यान करें.
सबसे पहले सुबह स्नान करने के बाद सभी देवताओं को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर में मुख कर श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का संकल्प करें. फिर अक्षत यानी पूरे चावल के दाने पर कलश स्थापना कर माता देवकी और श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल, मिट्टी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. इनकी यथा विधि से पूजा करें या योग्य ब्राह्मण से कराएं. पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नाम उच्चारण करना चाहिए. अंत में माता देवकी को अर्ध्य दें, भगवान श्री कृष्ण को पुष्पांजलि अर्पित करें. रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण के बाल रुप प्रतिमा की पूजा करें. रात में श्रीकृष्ण स्तोत्र, गीता का पाठ करें. दूसरे दिन स्नान कर जिस तिथि एवं नक्षत्र में व्रत किया हो, उसकी समाप्ति पर व्रत पूर्ण करें. इस दौरान आप इस मंत्र का जाप जब भी समय मिले करते रहें “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:’’.
हमारी तरफ से आपको जन्माष्टमी की ढेरों बधाइयां.