चाहिए सुकून तो आइये जनाब!

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रजनीश और मालती बहुत समय से कहीं घूमने नहीं जा सके थे, इसलिए कुछ दिन से वे अपनी दिनचर्या से पूरी तरह ब्रेक लेने के मूड में थे। लेकिन यह तय करना कठिन लग रहा था कि कहां जाएं, क्योंकि शिमला, मसूरी, जयपुर, हैदराबाद और बंगलौर जैसे तमाम चर्चित पर्यटन स्थल तो वे कई बार घूम चुके थे। इस बार वे किसी नई जगह पर जाना चाहते थे। ऐसी जगह, जहां ज्यादा भीड़-भाड़ न हो और सुकून  से कुछ दिन बिता सकें। चर्चित और बड़े पर्यटन स्थलों पर यह सुख मिल पाना संभव नहीं था। ऐसा केवल वहीं संभव था, जो अपेक्षाकृत कम चर्चित जगह हो।

यह बात केवल मालती-रजनीश के ही साथ नहीं है। शहर की भीड़ और उसके चलते चारों तरफ व्याप्त शोर से ऊबे लोग गिने-चुने पर्यटन स्थलों पर जाने के बजाय किसी नए स्थान को देखना चाहते हैं। किसी स्थान पर पहुंच वहां से दूर-दूर केसाइटसीइंग टूर पर जाने के बजाय वे उस सैरगाह की सुहानी जलवायु का आनंद लेने के साथ चैन से कुछ दिन बिताने को प्राथमिकता देते हैं। पर्यटन की असीमित संभावनाओं से भरे इस देश में ऐसी कई जगहें हैं भी, जहां के शांत और सुरम्य वातावरण में आपके मन और मस्तिष्क को ताजगी मिल सके। ऐसी जगहों पर सुविधाओं का कुछ अभाव तो हो सकता है, लेकिन इन अनछुए और अनकहे स्थलों पर प्रकृति का सौंदर्य आपको इस तरह सम्मोहित कर लेगा कि आप सब कुछ भूल जाएंगे।

वर्तमान का शहर- नई टिहरी

उत्तराखंड में स्थित यह शहर 21वीं  सदी का हिल स्टेशन कहा जा सकता है। सागरतल  से 1800  मीटर की ऊंचाई पर बसा शहर भागीरथी नदी पर बने टिहरी डैम के निकट पहाडि़यों  पर बसा है। इस आधुनिक शहर का इतिहास बस इतना है कि देश के विकास के लिए बने विशाल बांध के जलाशय में जलमग्न होने वाले प्राचीन टिहरी शहर के विस्थापितों के लिए नई टिहरी शहर बसाया गया था। इस शहर को योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया है। इसलिए यहां के घर, फ्लैट, कार्यालय और बाजार समरूपता लिए हुए हैं। यही इस पर्वतीय शहर की विशेषता है।

प्रकृति की खूबसूरती से भरपूर नई टिहरी स्वास्थ्यव‌र्द्धक आबोहवा का धनी है। इस शहर का कोई अतीत नहीं है। यहां केवल वर्तमान है। जो नए आलीशान मंदिर, गुरुद्वारे, मसजिद और चर्च के रूप में नजर आता है। शहर के बीच से गुजरता मुख्य मार्ग यहां का मॉल रोड कहलाने लगा है, जिसके आसपास साफ-सुथरा बाजार है। यहीं कुछ रेस्टोरेंट भी हैं। सैलानी इसी मार्ग पर चहलकदमी करते हुए दूर तक निकल जाते हैं। दुकानों आदि का क्रम खत्म होने के बाद इस पर घने पेड़ों का सिलसिला शुरू हो जाता है, जहां शीतल हवाओं से भरा वातावरण मन को शांति प्रदान करता है। मॉल रोड पर एक शहीद स्मारक है। एक बड़े पत्थर पर उन शहीदों के नाम अंकित हैं, जिनकी स्मृति में यह स्मारक बना है।

नई टिहरी की सबसे ऊंची पहाड़ी पर एक मनोरम स्थान है। यहां से पर्यटकों को हिमाच्छादित पर्वतों का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इसलिए लोगों ने इस स्थान को स्नो व्यू का नाम दे दिया। यह स्थान एक पिकनिक स्पॉट के समान है। एकाकीपन की तलाश में आए सैलानी यहां घंटों बैठ कर प्राकृतिक दृश्य निहारते रहते हैं।

इस स्थान से कुछ दूर देव दर्शन नामक स्थान है। यहां एक मंदिर है। नई टिहरी के सभी मंदिर नए हैं, लेकिन इनमें स्थापित प्रतिमाएं पुराने टिहरी शहर के मंदिरों से लाकर यहां प्रतिष्ठित की गई हैं। इस स्थान से टिहरी बांध की विस्तृत झील का मोहक दृश्य देखते ही बनता है।

नए शहर का दूसरा हिस्सा बौराड़ी है। यह कुछ नीचे की पहाड़ी पर बसा है। यहां कुछ मंदिर हैं और एक भव्य गुरुद्वारा है। पुराने टिहरी शहर की स्मृतियों को बनाए रखने के लिए यहां एक क्लॉक टॉवर बनाया गया है। इसके निकट ही यहां का स्टेडियम स्थित है। घुमावदार सड़कों के अलावा नई टिहरी में नीचे से ऊपर की ओर कई सीढ़ीनुमा मार्ग भी हैं। इसलिए इसे सीढि़यों का शहर कहना गलत न होगा। भागीरथी पुरम के पास टॉप टैरेस नामक स्थान भी सैलानियों को आकर्षित करता है। यहां से भी विस्तृत झील का दृश्य बड़ा मनोहारी प्रतीत होता है। नई टिहरी से 11 किलोमीटर दूर उत्तराखंड का प्राचीन शहर चंबा स्थित है। नई टिहरी अब धीरे-धीरे सप्ताहांत की शानदार सैरगाह बनता जा रहा है।

प्रकृति का अनूठा सौंदर्य- औली

उत्तराखंड में हर पर्वत, हर घाटी की अपनी अलग ही नैसर्गिक छटा है। वहीं एक स्थान औली है। औली में न तो कोई भीड़ है और न किसी तरह का शोर। इस स्थान की विशेषता यहां के हरे-भरे ढलान हैं। मखमली घास के इन ढलानों को बुग्याल कहते हैं। औली अपने आप में न तो कोई शहर है और न बाजार। यह तो बस एक सैरगाह है। यहां पहुंच कर आप यह पाएंगे कि अगर कोई है तो सिर्फ आप हैं और आपके सामने प्रकृति का अनूठा सौंदर्य है। आपके अलावा वैसे तो वहां होते और भी बहुत लोग हैं, पर सब अपने-आप में व्यस्त और मस्त। व्यस्तता का आलम भी सि़र्फ एक और वह है प्रकृति की मनोहारी छटा को भिन्न-भिन्न रूपों में देखना तथा आत्मसात करना।

दैनिक जीवन की भागदौड़ में क्षीण होती ऊर्जा को पुन: संचित करने के लिए ऐसा ही स्थान चाहिए। यहां के बुग्यालों में आप यायावार की भांति घूमते रहिए। दूर तक फैले इन बुग्यालों में हर तरफ एक सा सौंदर्य नजर आएगा। आसपास देवदार और ओक के घने जंगल भी हैं। कहीं-कहीं आपको छोटे-छोटे झरने भी देखने को मिल सकते हैं। औली के सामने बर्फ से ढके पहाड़ों की लंबी श्रृंखला देखने को मिलती है। वहां आप एक पॉइंट पर खड़े होकर इन पर्वत शिखरों की पहचान भी कर सकते हैं। इसके लिए वहां पीक के नाम और उनकी दिशा का नक्शा पत्थर पर बना है। यह स्थान समुद्रतल से करीब 2520 मीटर की ऊंचाई पर है। इसलिए यहां हमेशा मौसम ठंडा ही बना रहता है।

सर्दियों में तो औली एक अलग ही रूप ले लेता है। यहां के बुग्याल उस समय बर्फ से ढक जाते हैं। तब यह स्कीइंग के ढलानों के रूप में साहसी पर्यटकों को आमंत्रित करते हैं। हिमक्रीड़ा के उस मौसम में यहां विदेशी सैलानी भी खूब आते हैं। जनवरी-फरवरी में यहां हर साल स्कीइंग की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। नौसिखिए लोगों के लिए यहां स्कीइंग के कोर्स भी चलाए जाते हैं। स्कीइंग अगर न भी करनी हो तो औली के धवल सौंदर्य को निहारने के लिए तो यहां आया ही जा सकता है। जोशीमठ से औली और गौरसों तक रोप-वे या ट्रॉली मार्ग से आना भी अपने आपमें एक रोमांचक अनुभव होता है।

प्रकृति में पुराण- पचमढ़ी

उत्तर भारत के पर्वतीय स्थलों से हटकर किसी और दिशा में घूमने निकलना हो तो आप मध्य प्रदेश के सबसे ऊंचे स्थान पचमढ़ी पहुंच जाएं। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह आदर्श पर्यटन स्थल है। सतपुड़ा की पहाडि़यों से घिरा स्थल मध्य प्रदेश के हरे नगीने के समान है। इसे प्रकृति ने बड़ी तन्मयता से संवारा है। यहां की प्राणदायक शुद्ध वायु सैलानियों में नए जोश का संचार कर देती है। यहां आकर पता चलता है कि नियमित जीवन की आपाधापी से कुछ दिन का अवकाश कितना जरूरी है।

पचमढ़ी में चाहें तो वहां की साफ-सुथरी शांत सड़कों पर घूमते रहें या फिर चारों दिशाओं में फैले मोहक स्थानों की सैर कर आएं। यहां मौजूद कई धार्मिक स्थल इस सैरगाह को आस्था से भरपूर एक अलग ही गौरव प्रदान करते हैं, जबकि झरने शीतलता तो देते ही हैं,  इसका प्राकृतिक गौरव भी बढ़ाते हैं। शैलाश्रयों में प्राचीन शैलचित्र उत्सुकता जगाते हैं और जंगल प्रकृति के संसर्ग में भटकने को आमंत्रित करते हैं।

पचमढ़ी के देवालय : जटाशंकर एक पवित्र गुफा के रूप में ऊंची-ऊंची चट्टानों के मध्य स्थित है। यहां की रॉक फॉर्मेशन ऐसी है मानो शिव की जटाएं फैली हों। कहते हैं भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शिव ने यहीं आश्रय लिया था। यहां पावन शिवलिंग के दर्शन होते हैं। महादेव एक 35 फुट लंबी गुफा में स्थित शिवालय है। यहां निरंतर जल टपकता रहता है। यह शिव भक्तों की आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है। हर महाशिवरात्रि पर यहां भव्य मेला लगता है। इसके पास ही छोटा महादेव एवं गुप्त महादेव भी पवित्र स्थल हैं। चौरागढ़ पहाड़ी का मार्ग पैदल ही तय करना पड़ता है। करीब चार किलोमीटर का यह पहाड़ी मार्ग हरियाली से घिरा है। इस पहाड़ी पर भी एक शिव मंदिर है। जहां त्रिशूल चढ़ाने की परंपरा है। पचमढ़ी को यह नाम पांडव गुफाओं से मिला था, जिन्हें पचमढ़ी यानी पांच कुटी कहा जाता था। मान्यता है कि अपने वनवास के दौरान पांडव कुछ समय इन गुफाओं में रहे थे।

मनमोहक झरने : पचमढ़ी में कई सुंदर झरने है, जिन्हें देखने के लिए घने वृक्षों के मध्य होकर जाना होता है। इनमें बी-फाल, डचफाल और सिल्वर फॉल प्रमुख हैं। ये झरने ऐसे चमकते हैं मानो चांदी पिघल रही हो। इनके पास ही अप्सरा विहार तथा सुंदर कुंड नामक स्थान पर सुंदर जलाशय भी सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

अन्य स्थान : प्रियदर्शनी एक ऐसा व्यू पॉइंट है जहां से प्रकृति के दिलकश नजारे देखने को मिलते हैं। इसके अलावा हांडी खोह, धूपगढ़, पातालकोट, कैथलिक चर्च और क्राइस्ट चर्च भी दर्शनीय स्थान हैं। इस तरह देखा जाए तो पचमढ़ी की शांत फिजाओं में 4-5 दिन आराम से बिताए जा सकते हैं।

शांत सैरगाह- पालमपुर

हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में पालमपुर नाम की एक शांत सैरगाह है। धौलाधार पर्वतमाला के साये में बसा यह शहर सागर तल से 1205 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पालमपुर के नाम की उत्पत्ति स्थानीय बोली के पुलम शब्द से मानी जाती है, जिसका अर्थ है पर्याप्त जल। इस क्षेत्र में हर ओर जल के सोते, झरने और नदियां हैं। शायद इसीलिए यहां की हवाओं में शीतलता के साथ-साथ नमी भी है। हवाओं की नमी और पहाड़ों पर खुलकर पड़ती सूरज की किरणों के समन्वय ने यहां की जलवायु को चाय की खेती के लिए काफी अनुकूल बना दिया है। 1849 में डॉ. जेम्स ने क्षेत्र की इस विशिष्टता को पहचान कर पहली बार चाय की खेती शुरू की थी। इसके बाद कुछ ही दशकों में कांगड़ा चाय ने विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली। पालमपुर के आसपास फैले चाय के बड़े-बड़े बागान आज इसकी विशेषता माने जाते हैं।

पर्यटकों के लिए चाय बागान की खूबसूरती पहला आकर्षण है। इन्हें देखते हुए सैलानी पैदल ही बहुत दूर तक निकल जाते हैं। मार्ग के दोनों ओर नजर आते चाय के झाड़ीनुमा पौधे और उनमें पत्तियां चुनते स्त्री-पुरुष सुंदर दृश्य प्रस्तुत करते हैं। हरियाली भरे इन बागानों में घूमना और पत्तियां चुनते हुए फोटो खिंचवाना हर सैलानी को पसंद आता है।

न्यूगल खड यहां का एक पिकनिक स्पॉट है। पठार के छोर पर स्थित इस स्थान से बांदला जलधारा तथा धौलाधार की 15000 फुट ऊंची पर्वत श्रृंखला का नजारा बेहद प्रभावित करता है। यहीं हिमाचल पर्यटन का न्यूगल कैफे भी है। कुछ ही दूरी पर स्थित पांच शताब्दी से

भी अधिक पुराना बांदला माता मंदिर तथा विंध्यवासिनी मंदिर भी दर्शनीय है। पालमपुर की ऊंची पहडि़यों पर चीड़ और देवदार के जंगलों की हरीतिमा भी इस स्थान को एक अलग भव्यता प्रदान करती है। सुभाष चौक इस शहर का केंद्र है, जिसके आसपास यहां का बाजार स्थित है। जहां अनेक फास्ट़फूड पार्लर और रेस्टोरेंट स्थित हैं।

पालमपुर के निकट अन्य स्थानों में अंद्रेटा, बैजनाथ, चामुण्डा देवी प्रमुख हैं। टैक्सी या बस द्वारा इन स्थानों को आसानी से देखा जा सकता है। पालमपुर की यात्रा का वास्तविक आनंद तो पठानकोट से चलने वाली टॉयट्रेन का सफर करके लिया जा सकता है। कांगड़ा घाटी रेलवे की ट्रेन का मनमोहक सफर इस यात्रा को यादगार बना देता है।

कोलाहल से दूर- कलिम्पोंग

माना कि दार्जिलिंग और गंगटोक की यात्रा का अलग आकर्षण है, लेकिन दोनों प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों को देखने के बाद भी अगर कुछ दिन प्रकृति की गोद में विश्राम करने का मन हो तो आप कलिम्पोंग जरूर जाएं। यह छोटा-सा हिल स्टेशन उन्हीं सैलानियों को भाता है जो व्यर्थ के कोलाहल से दूर किसी शांत माहौल की तलाश में हों। लगभग 4100 फुट की ऊंचाई पर स्थित कलिम्पोंग की सुहानी आबोहवा के साथ यहां सिक्किमी, भूटानी और तिब्बती संस्कृति का संगम भी प्रभावित करता है। यहां के पुराने भवन आज भी उस दौर की भव्यता का एहसास कराते हैं। इनमें मोरगन हाउस, हिल टॉप और ताशीडिंग आज लॉज में परिवर्तित हो चुके हैं। जबकि डॉ. ग्राहम होम्स एक बोर्डिग स्कूल है।

कलिम्पोंग के स्थानीय भ्रमण में यहां के बौद्ध मठ भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इनके अंदर की इंद्रधुनषी छटा, भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में सौम्य प्रतिमाएं, बार-बार घूमते प्रार्थना चक्र और हवाओं से सरसराते प्रार्थना ध्वज देख लगता है जैसे किसी अलग संसार में आ गए हों। प्रार्थना के समय प्रज्ज्वलित तमाम दीपक और साथ में बजते तिब्बती परंपरा के वाद्य तो आपको वहां ठहरने के लिए बाध्य ही कर देंगे। सब कुछ कितना शांत लगता है! इनमें फोटो खींचना भी मना नहीं है। इसलिए हर कोई इन्हें कैमरे के माध्यम से स्मृतियों में कैद करने को आतुर रहता है। इन मठों में योग्या मठ, फो ब्रांज मॉनेस्ट्री, थार्पा चाओलिंग मॉनेस्ट्री प्रमुख हैं।

पुष्प प्रेमियों के लिए तो कलिम्पोंग मानो स्वर्ग ही है। पूरे भारत में सबसे ज्यादा नर्सरी इस शहर में हैं। देश में सबसे सुंदर ऑर्किड भी इन नर्सरियों में ही देखने को मिलते हैं। इनके अलावा कई तरह के अद्भुत फूल और अलग प्रजाति एवं आकार के सुंदर कैक्टस भी प्रभावित करते हैं। कलिम्पोंग में कुछ स्थान ऐसे हैं जहां के मनोहारी दृश्य आपका मन मोह लेते हैं। देयलो हिल तथा दर्पिन दारा नामक स्थानों से कंचनजंगा पीक तथा अन्य हिम शिखर भी स्पष्ट नजर आते हैं। कुछ स्थानों से सूर्योदय का अद्भुत मंजर भी नजर आता है। वहीं कुछ व्यू पॉइंट ऐसे हैं, जहां से सैलानी तीस्ता नदी एवं रंगीन नदी के संगम का अनुपम दृश्य देख कर प्रसन्न होते हैं। कलिम्पोंग में आर्ट एंड क्राफ्ट सेंटर से आप खरीदारी कर सकते हैं, तो यहां सप्ताहांत में लगने वाले हाट में स्थानीय जनजीवन को निकट से देख सकते हैं। शहर से 32 किलोमीटर दूर लावा नामक स्थान किसी रेसॉर्ट के समान है। 7200 फुट की ऊंचाई पर यह स्थान घने जंगलों से घिरा है। इसके निकट ही एक शिव मंदिर भी दर्शनीय है। साहसी सैलानियों के लिए यहां से कई ट्रैकिंग विकल्प भी हैं। कलिम्पोंग में एक आर्मी गोल्फ क्लब है। यहां पश्चिम बंगाल का सबसे ऊंचा गोल्फ का मैदान है। शानदार छुट्टियां मनाने के लिए यह सब पर्याप्त है।

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