बदलते अंदाज सैर-सपाटे के

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समय के साथ-साथ हमारे जीवन में भी बहुत कुछ बदला है। घूमने-फिरने का शौक मनुष्य को सभ्यता के आरंभिक दौर से ही रहा है। विज्ञान की उपलब्धियों से पहले भी लोग देशाटन के लिए विविध परंपरागत तरीके अपनाते रहे हैं। बदलाव की बयार के चलते आज सैर-सपाटे के गंतव्य ही नहीं, अंदाज भी बदल गए हैं। पर्यटन के लिए अब लोग ऐसे स्थानों को चुन रहे हैं जहां उन्हें तन-मन का सुकून प्राप्त हो सके। भारत में पर्यटन मंत्रालय ने ऐसे स्थानों को विशेष रूप से चिह्नित करना शुरू किया है जहां बदलते परिदृश्य में सबसे अधिक संभावनाएं हो सकती हैं।

विविधताओं से भरा है देश

हमारा देश कई संस्कृतियों की इंद्रधनुषी छटा से भरा है। इसकी यही विशेषता दुनिया भर के पर्यटकों को लुभाती है। पर्यटन के क्षेत्र में निहित संभावनाओं तथा इस क्षेत्र में हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों को देखते हुए भारत सरकार ने पर्यटन उद्योग को एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा देने की घोषणा की है। इससे पर्यटन उद्योग के नए आयामों के विकास में मदद मिलेगी और इससे होने वाली विदेशी मुद्रा की आय में भी कई गुना वृद्धि हो सकेगी। यही नहीं, इस उद्योग के तहत होटल, उड़ान सेवा, ट्रेवल एजेंसियों, हस्त शिल्प व सांस्कृतिक गतिविधियों से सर्वाधिक रोजगार स्ति्रयों को मिले हैं। इस उद्योग में स्ति्रयों की संख्या पुरुषों के मुकाबले दोगुनी है।

भारत के पांच उत्तरी राज्यों ने पर्यटन को पूर्ण उद्योग का दर्जा प्रदान किया है। पंजाब, जम्मू-कश्मीर और चंडीगढ़ ने पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिए जाने पर सहमति दे दी है। हरियाणा और हिमाचल पहले ही पर्यटन को उद्योग का दर्जा दे चुके हैं। पर्यटन के क्षेत्र में विभिन्न देशों की कड़ी प्रतिस्पर्धा को देखते हुए सरकार ने कई योजनाएं निश्चित की हैं। इसके तहत सांस्कृतिक विरासत, तीर्थ पर्यटन तथा परंपरागत संस्कृति से जुड़े उत्सवों को बढ़ावा दिया जा रहा है। गर्मी व वर्षा के मौसम में विभिन्न पर्यटन स्थलों की सूचना देने के काम पर बल दिया जा रहा है। ध्यान, योग और आयुर्वेद जैसी विशेषताओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर पर यह जो भी कवायद की जा रही है, उसके पीछे एक ही उद्देश्य है कि पर्यटन के नए आयामों के बीच बढि़या तालमेल कायम किया जा सके। अब वह जमाना नहीं रहा जब घूमने-फिरने के नाम पर गिने-चुने स्थल थे। उपभोक्तावादी संस्कृति के विस्तार, सूचना क्रांति, पैसे को खुलकर खर्च करने की प्रवृत्ति तथा तन-मन के सुकून के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा ऐसे कारण हैं जिन्होंने पर्यटन के क्षेत्र में नए आयामों को परिलक्षित किया है। अब लोग पर्यटन स्थलों पर मनोरंजन, खेल-कूद, खान-पान तथा तमाम ऐसी सुख-सुविधाओं की अपेक्षा करते हैं जो उन्हें भरपूर आनंद व शांति प्रदान कर सकें। यही वजह है कि अब भारत में ऐसे केंद्रों का विकास हो रहा है जहां हीलिंग ट्रेडिशंस, आयुर्वेद, योग, मेडिटेशन, एरोमाथेरेपी, यूनानी एंड सिद्धा, होम्योपैथी, तिब्बतन मेडिसिन, नेचुरोपैथी, एक्यूपंचर एंड एक्यूप्रेशर, जेम थेरेपी, प्रेरिक हीलिंग, चक्र थेरेपी, बॉडी मसाज तथा ऑयल थेरेपीज की सुविधाएं उपलब्ध हों।

नए मिजाज के प्रतीक

दक्षिण भारत में केरल के कीलोन से एलप्पी के बीच बैकवाटर्स में तैरते असंख्य हाउसबोट पर्यटन के नए मिजाज के प्रतीक हैं। कुछ समय पहले तक नारियल व बांस के घने जंगलों में जलक्रीड़ा करते हुए बीच पानी में केटुवेलन नाव से सवारी करना अपने आपमें एक सुखद अनुभव था। लेकिन जो लोग इसका लुत्फ उठा चुके हैं अगर अब वे केरल आएं तो यह देखकर चौंक जाएंगे कि पर्यटन एजेंसियों ने इन पारंपरिक नावों को हाउसबोट में बदल कर पूरे क्षेत्र को नया रंग दे दिया है। विशेषज्ञ इसे इको टूरिज्म यानी प्राकृतिक पर्यटन का नाम देते हैं।

इंस्टीटयूट ऑफ व‌र्ल्ड टूरिज्म के अनुसार इस तरह के नए परिवर्तनों का पर्यटक अत्यंत उत्साह के साथ स्वागत कर रहे हैं। इन नए बदलावों से इस उद्योग के राजस्व में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है। इसका एक प्रमाण यह भी है कि मार्च 2004 तक दुनिया भर के कुल सैलानियों में से लगभग 24 प्रतिशत लोगों ने प्राकृतिक स्थलों को सर्वाधिक प्राथमिकता से चुना। दक्षिण अफ्रीका, केन्या तथा इक्वाडोर जैसे देशों के बाद भारत में टूरिज्म के इस स्वरूप को हाथों हाथ लिया जा रहा है। भारत में आज अनेक छोटी-बड़ी पर्यटन एजेंसियां इको टूर पैकेज उपलब्ध कराने में जुटी हैं।

शहरी जीवन की आपाधापी, जीवन के अति मशीनीकरण और बेहिसाब प्रदूषण से ऊबा आज के मनुष्य का मन स्वत: ही प्राकृतिक विकल्पों की तरफ आकर्षित हुआ है। ऐसे में प्राकृतिक स्थलों व उपायों को अपनाने के लिए होड़ सी लगी हुई है। प्राकृतिक पर्यटन में उन स्थानों को चुना जाता है जहां इंसान व विज्ञान की कम से कम दखल हो। आदमी की कारीगरी ने जिन स्थानों को छेड़छाड़ कर विकृत नहीं किया है वे प्राकृतिक पर्यटन के सुंदर स्थल हो सकते हैं।

बहुरंगी प्रकृति के साथ

श्रीलंका के मैंग्रोव, मालदीव का कोरल रीफ तथा भारत में केरल प्राकृतिक पर्यटन के सबसे सफल उदाहरण हैं। प्राकृतिक पर्यटन की चाह रखने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। विमान सेवाओं के आंकड़े इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि अब छुट्टियों में लोग ऐसे ही स्थल चुनना चाहते हैं, जहां हाय-तौबा से बचकर छुट्टियों का भरपूर मजा लिया जा सके। यह प्रकृति के प्रति दिलचस्पी का ही प्रमाण है कि एक अरसे तक उजाड़ पड़े रहने वाले श्रीलंका के पश्चिमी तट का रॉनवैली रिजॉर्ट आज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्रबिंदु है। जबसे इस रिजॉर्ट को इकोटूरिज्म डेस्टिनेशन में तब्दील किया गया है तबसे यहां का कायापलट हो गया है। श्रीलंका के समुद्रीतट पर मैंग्रोव वन की उपस्थिति तथा वहां के स्थानीय नागरिकों की मदद से बनाया गया पक्षी विहार लोगों को मंत्रमुग्ध करने की क्षमता रखता है।

इसी श्रृंखला में मालदीव के तटीय इलाकों की किस्मत भी तबसे बदलने लगी है, जबसे यहां प्राकृतिक पर्यटन की संभावनाओं का सूर्योदय हुआ है। यहां रीफ शार्क को देखने के लिए भी भारी तादाद में लोग आने लगे हैं। स्कूबा डाइविंग जैसा रोमांचक खेल भी यहां सैलानियों के लिए आकर्षण का बड़ा कारण है। प्राकृतिक पर्यटन को विकसित करने का यहां दोहरा लाभ देखने को मिला है। एक ओर जहां सरकार को 19 मिलियन डॉलर राजस्व का शुद्ध मुनाफा मिला, वहीं दूसरी ओर आर्थिक निर्भरता ने वहां के नागरिकों व सरकार को शार्क सरीखी दुर्लभ मछली को संरक्षित व संवर्धित करने का मार्ग प्रशस्त किया।

दक्षिण अमेरिकी प्रांत कोस्टा रीका में प्राकृतिक पर्यटन सर्वाधिक मजबूत उद्योग के रूप में स्थापित हो चुका है। 650 मिलियन डॉलर की वार्षिक आय के साथ यह उद्योग देश के समूचे घरेलू उत्पाद का लगभग 10 प्रतिशत है। वहां के राष्ट्रीय उद्यान सैलानियों के लिए सर्वाधिक आकर्षक स्थल हैं। प्राकृतिक पर्यटन का अमेरिका में किस कदर बोलबाला है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग आठ लाख सैलानियों में से तीन लाख से भी अधिक वहां के राष्ट्रीय उद्यानों के प्रशंसक हैं। स्पष्ट है कि पैसा छापने की मशीन बन चुके इन राष्ट्रीय उद्यानों की मांग इतनी तेज है कि कोस्टा रीका का लगभग 35 प्रतिशत भूभाग राष्ट्रीय उद्यान या फिर संरक्षित श्रेणी में शुमार किया जाता है।

वायनाड के जंगल

भारत में प्राकृतिक पर्यटन की तलाश करने वाले सैलानियों के लिए केरल के बैकवाटर्स के अलावा वायनाड के जंगल भी आकर्षक स्थल हैं। वहां कुछ संगठनों द्वारा संचालित ईको टूरिज्म पैकेज किसी को भी लुभाने के लिए काफी हैं। जीप से जंगल में सैर-सपाटे के बाद रात को 25 से 35 मीटर ऊंचे वृक्षगृह यानी मचान से झींगुरों की झांय-झांय के बीच चांद को निहारने का अनुभव आसानी से नहीं भूलता। इन मचानों पर आधुनिक सुख-सुविधाओं का पूरा इंतजाम रखा जाता है। जानवरों की आवाजें, जंगल की अद्भुत सुनसान रात, हाथियों के झुंड की धम-धम करती आमद या फिर विशुद्ध जंगल राज जो कुछ भी हम किताबों में पढ़ते या टीवी के परदे पर देखते हैं उसका जीवंत अनुभव हॉलीडे कॉटेज में रहकर किया जा सकता है।

ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट

समूचे विश्व में फैल रहे हॉलीडे रिजॉर्ट की नई श्रृंखला में महाराष्ट्र के पुणे में स्थित ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट भी तेजी से दुनिया के नक्शे पर उभरा है। भारत में पिछले वर्ष आगरा स्थित ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा सैलानी पूना में ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट में आए। यहां आने वाले लोगों में 52 प्रतिशत भारतीय हैं। वैसे यहां 110 से भी अधिक देशों के पर्यटक आते हैं। यह स्थान एक ऐसे केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित होता जा रहा है जहां जीवन संगीत की मधुर धाराएं आनंद के सबसे गहरे सागर में विलीन होती हैं और आंतरिक रूपांतर की नई कलियां चटकती हैं। यहां बने विश्वस्तरीय सुविधाओं वाले रिजॉर्ट में पर्यटकों को एक ही जगह कई तरह के अनुभव हासिल हो जाते हैं। यहां प्रात:कालीन कक्षाएं लगती हैं। कई बार देर रात तक चित्रकला प्रदर्शनी तथा संगीत संध्या का आयोजन किया जाता है। दिन भर चलने वाले तरह-तरह के नृत्य-गीत-संगीत यहां के मूल ऊर्जा स्त्रोत हैं। प्रतिदिन नियमित रूप से होने वाले ध्यानसत्रों के अलावा एक घंटे की अलग-अलग तरह की वर्कशॉप भी आयोजित की जाती है।

ओशो की ध्यान विधाओं को लोगों तक पहुंचाने में लगे देवेंद्र भारती के अनुसार इस तरह की कार्यशालाओं में जिब्रिश, योग, एरोबिक, योगासन, जेन, धनुर्विद्या, ताई-ची, पाई डांस, जेनिस, मार्शल आर्ट, विभिन्न नृत्य विधियां,स्पीकिंग,कम्युनिकेशन, गायन-वादन आदि ऐसे तत्व हैं जो किसी भी व्यक्ति को उसके भीतर छिपी वास्तविक प्रतिभा का दर्शन कराते हैं।

यह रिजॉर्ट इस अंतर्दृष्टि पर आधारित है कि न तो बौद्धिक उहापोह की जरूरत है और न ही अपने मन व उसकी आदतों से लड़ने की। हमें अपनी समस्याओं से जूझने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि कई बार जिसे हम समस्या समझते हैं, वह समस्या होती ही नहीं है। अंधेरे को खिड़की से बाहर फेंकने का असंभव प्रयास करने की जगह बस प्रकाश जलाने भर की देर है। होश को भीतर ले जाने पर अस्वाभाविक चीजें खुद ही गिरने लगती हैं और जीवन में आनंद के फूल खिलने लगते हैं। तब पर्यटक संपूर्ण आनंद और उत्सव का अनुभव करते हैं। आप दैनिक जीवन में आसानी से देख सकते हैं कि विचार आपका ध्यान भंग करते हैं- जैसे कार एक्सीडेंट का ही उदाहरण लें- यदि आप होश से भरे होते तो आप इस तरह से कार चलाते क्या? आंतरिक विज्ञान का बुनियादी सूत्र यह है कि कैसे अभी और यहीं होशपूर्ण हुआ जाए और रिजॉर्ट की संरचना पर्यटकों के किसी होश केंद्र को स्पर्श करती है।

देवेंद्र भारती के अनुसार ओशो मल्टीवर्सिटी ध्यान व रूपांतरण के लिए विश्व का सबसे बड़ा विकास केंद्र है। यहां पश्चिम की आधुनिक थेरेपी प्रक्रियाओं के साथ-साथ पूरब की रहस्यदर्शी विधियों, सृजनात्मक कलाओं, मार्शल आर्ट्स, तंत्र, झेन, सूफी प्रक्रियाओं का समन्वय होता है। कई तरह के कोर्स, वर्कशॉप व प्रशिक्षण शिविर यहां साल भर चलते रहते हैं। मल्टीवर्सिटी में शरीर, मन, भाव तथा इंद्रियों पर कार्य करने के लिए जिन विधियों का प्रयोग होता है वे सिर्फ ध्यान के प्रवेशद्वार हैं। यहां दुनिया भर के जाने-माने विशेषज्ञ, प्रशिक्षक तथा अनुभवी व्यक्ति संबंधित कार्यक्रमों की शिक्षा देने आते हैं। यहां विश्व की विविध संस्थाओं के प्रमुख व्यक्ति विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय रहकर पर्यटन के आनंद के साथ-साथ तनाव व काम के बोझ से उबरने का हुनर भी सीखते हैं। मल्टीवर्सिटी के कई कार्यक्रम एक अवसर देते हैं कि हम स्वयं को देखें और जैसे हम हैं उसे स्वीकार करें। सभी कार्यक्रमों का प्राथमिक प्रयास यह है कि हम अपने मन के बोझ से मुक्त होकर ध्यान की तरफ बढ़ें। सही तैयारी यह है कि हम स्वयं के प्रति होशपूर्ण हो जाएं। हम देखें कि कैसे होश हमारी तथाकथित समस्याओं को गिरा देता है।

दर्द से निजात

ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट में हॉलैंड निवासी रसाल पिछले 14 साल से बॉडीवर्क कर रहे हैं। यह एक अद्भुत मसाज थेरेपी है जो जॉइंट रिलीज के लिए संजीवनी का काम करती है। यहां रिबैलेंसिंग, डीप कनेक्टिव टिशू मसाज, जॉइंट रिलीज, सेंसेविटी ऑफ टच, वर्किग विद पेन आदि क्रियाओं द्वारा व्यक्तियों को स्वस्थ किया जाता है। श्री रसाल बताते हैं, ‘सामान्यत: रोजमर्रा की जिंदगी में बेहोशी के कारण शरीर के प्रति लोग न तो जागरूक होते हैं और न ही उसकी देखभाल करते हैं। शरीर के किसी अंग का अधिक उपयोग व किसी हिस्से की उपेक्षा ये बुनियादी कारण हैं जिनके चलते शरीर में तरह-तरह के दर्द होते हैं। इसी तरह आधुनिक जीवन में कई तरह के तनाव, अवसाद, चिंताएं, पीड़ाएं और बेचैनियां भी शरीर को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। मानसिक श्रम करने वालों के शरीर में सामान्यत: अधिक तकलीफ होती है। कई बार लंबी-लंबी यात्राएं व पर्यटकों को दूर-दराज के सफर के दौरान पेश आने वाली दिक्कतें भी असहज बनाने का कारण होती हैं। इन वजहों से शरीर के विभिन्न जोड़ों में ऊर्जा का प्रवाह सहज नहीं हो पाता है। जिसके चलते जोड़ों में दर्द होता है। कमर के निचले हिस्से में, गर्दन में, घुटनों में, कंधों में सामान्यत: लोगों को दर्द की शिकायतें रहती हैं। जॉइंट रिलीज सेशन में हलके मसाज से ऊर्जा का अवरुद्ध प्रवाह फिर से सहज संचालित हो जाता है तथा मांसपेशियां शिथिल होती जाती हैं।’ विमान सेवाओं का अधिक प्रयोग करने वाले प्रोफेशनल्स, ऑफिस में काम करने वाले व शारीरिक श्रम कम करने वाले व्यक्ति अपने पर्यटन पैकेज में इस तरह की सुविधाओं की स्वाभाविक अपेक्षाएं रखते हैं।

यहां एक विशेष वेलनेस पैकेज भी उपलब्ध है, जिसमें किसी भी सप्ताहांत में अकेला व्यक्ति दो रात तीन दिन के लिए उत्तम रहन-सहन, खान-पान व अन्य तमाम सुविधाओं का उपभोग साढ़े पांच हजार रुपये में कर सकता है। दो व्यक्तियों के लिए यह शुल्क साढ़े आठ हजार रुपये है। इस पैकेज में पर्यटकों को रजिस्ट्रेशन व पार्टिसिपेशन पास, स्वास्थ्यव‌र्द्धक भोजन, बुद्धकुंज में दैनिक कक्षाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम व पार्टियां, गेस्टहाउस में तीन दिन व दो रातें, स्विमिंग पूल, जकूजी, सोना, जिम, जेनिस, वॉलीबॉल तथा ओशो ऑडिटोरियम में ओशो ध्यान प्रयोग सम्मिलित हैं। नवविवाहित युगलों और हनीमून के लिए बेहतर स्थान चाहने वाले युवाओं के लिए भी यह रिजॉर्ट एक सुंदर विकल्प बनकर उभरा है।

एक केंद्र सिक्किम भी

भीड़-भाड़ से दूर नए पर्यटन केंद्रों के रूप में इन स्थानों के अलावा हिमालय की गोद में स्थित सिक्किम भी एक प्रमुख केंद्र है। सिक्किम की सुंदर घाटियां, मोहक झील तथा प्राकृतिक संपदा यहां आने वाले पर्यटकों को लंबे अरसे तक याद रहती है। प्रकृति को आधार बनाकर सिक्किम सरकार द्वारा जो पैकेज बनाया गया है उसमें सर्वाधिक आकर्षक है ऑर्किड पर्यटन। इस पैकेज के अंतर्गत पर्यटकों को राज्य में उपलब्ध आर्किड की 454 प्रजातियों से परिचित कराया जाता है। बटरफ्लाई प्लान भी इस पैकेज का आकर्षक हिस्सा है। इसके अंतर्गत भारत में पाई जाने वाली प्राय: समस्त तितलियों की प्रजातियां बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में देखी जा सकती हैं। इन लोकप्रिय पैकेजों का ही प्रभाव है कि सिक्किम सरकार द्वारा पिछले तीन सालों में वार्षिक आधार पर दो लाख अतिरिक्त पर्यटकों को आकर्षित किया गया।

वन्य जीवन का आकर्षण

प्राकृतिक पर्यटन का केंद्र वन्य जीवन के सुनहरे रहस्य भी है। रणथम्भौर इसकी जीती-जागती मिसाल है। अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित रणथम्भौर टाइगर रिजर्व ने पिछले दो वर्षो में तीस हजार पर्यटकों को आकर्षित किया है। इन पर्यटकों में आने वाले ज्यादातर सैलानी बाघ की झलक पाने को 10 से 30 हजार रुपये तक खर्च करने को उतावले रहते हैं। लगभग यही स्थिति मध्य प्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क व उत्तरांचल के कार्बेट टाइगर रिजर्व की भी है। खुली जीप में इन पार्को की सैर करते समय जंगल के राजा से आंखें चार करने का अपना अलग रोमांच है।

उत्तरांचल, चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल, महाराष्ट्र, दीव आदि प्रदेशों में भी अनेक स्थानों को ऐसे केंद्रों के रूप में चिह्नित एवं विकसित किया जा रहा है, जहां पर्यटकों के आवागमन की नई संभावनाओं का उदय हुआ है। बदलती जीवनशैली व नित नए विचारों को अंगीकार करने की स्वतंत्रता ने पर्यटन व घूमने-फिरने के तौर-तरीकों को भी प्रभावित किया है और अब सैलानी ऐसे स्थान को चुनना चाहते हैं जहां वे पर्यटन का सही अर्थो में आनंद उठा सकें। ऑर्किड पैकेज के अंतर्गतपर्यटकों को सिक्किम में उपलब्ध ऑर्किड की 454 प्रजातियों से परिचित कराया जाताहै। बटरफ्लाई प्लान भी इस पैकेज का आकर्षक हिस्सा है। इसमें तितलियों की प्रजातियां बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में देखी जा सकती हैं

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