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थोड़ी देर पहले आसमान में बादलों के कुछ टुकड़े गुफ्तगूं कर रहे थे। सहसा एक छतरी हवा में उड़ी और देखते ही देखते वह भी बादलों के साथ गुफ्तगूं में शामिल हो गई। बादलों ने जाने उस छतरी से क्या कहा कि हवा में मस्ती से हिचकोले खाती छतरी आसमान का सीना नापने के बाद दूर कहीं समतल जगह पर जाकर उतर गई। इस अद्भुत और अलौकिक दृश्य का यहीं पटाक्षेप नहीं हुआ। एक के बाद एक कई छतरियां हवा में उड़ीं और घाटियों में जैसे उड़ानखटोलों की बहार आ गई।
यह दृश्य कोई कल्पना में नहीं उपजा, बल्कि हिमाचल की घाटियों में तैरते रोमांच की जीती-जागती हकीकत है। यह दृश्य इस बात के साक्षी भी हैं कि हिमाचल की घाटियां अपने जादुई सौंदर्य के लिए मशहूर होने के साथ-साथ रोमांचप्रेमियों में नया जोश, नई ललक, नई स्फूर्ति और उमंग भरती हैं। पेड़, पौधे, हवा, खेत-खलिहान भी इस रोमांच की उड़ान में शामिल हो जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षो से हिमाचल की घाटियां कई रोमांचप्रेमी पैराग्लाइडिंग पायलटों के पदचाप की साक्षी बनी हैं, जिन्होंने यहां से उड़ान भरकर हवा में रोमांच के कई अध्याय दर्ज करवाए हैं। कांगड़ा जिले की चामुंडा पीक व बिलिंग, बिलासपुर की बंदला घाटी, मंडी की जोगिंद्रनगर घाटी और कुल्लू की सोलंग घाटी पैराग्लाइडिंग के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है, जहां रोमांचप्रेमी खिंचे चले आते हैं। इन घाटियों में जब पैराग्लाइडर उड़ान भरते हैं तो आसमान रंग-बिरंगी छतरियों से भर उठता है। प्रशिक्षित पायलटों के साथ रोमांचप्रेमी युवाओं का रुझान भी इस साहसिक खेल की तरफ लगातार बढ़ रहा है।
फ्रांस से हुई पैराग्लाइडिंग की शुरुआत
पैराग्लाइडिंग की शुरुआत असल में 1978 में फ्रांस में हुई थी, जहां पहली बार एल्प्स पर्वत की ऊंचाइयों से उड़ान भरी गई। पैराग्लाइडर में कपड़े की दो सतह होती है, जिन्हें सिलकर छोटे-छोटे हिस्सों में बांट देते हैं। ज्यों ही खिलाड़ी पैराग्लाइडर लेकर दौड़ता है, इस हिस्से में हवा भर जाती है, जिससे पैराग्लाइडर हवा में तैरने लगता है। यदि खिलाड़ी हवा में दाएं मुड़ना चाहता है तो वह ग्लाइडर में लगी दाएं हाथ की रस्सियों को खींचता है और बाएं मुड़ना चाहता है तो बाई ओर की रस्सियों को अपनी ओर खींच लेता है। हिमाचल की घाटियों के अलावा भारत में पैराग्लाइडिंग के लिए मशहूर स्थलों में राजस्थान में अरावली पर्वत श्रेणियां, मध्यप्रदेश में महू, मैसूर में चामुंडी पहाडि़यां और बेंगलूर में कोनिकट का नाम प्रमुख है।
बीड़ से होकर है रास्ता
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जनपद की बिलिंग घाटी कई बार साहसी खिलाडि़यों के रोमांचक प्रदर्शन की गवाह बन चुकी है। हैंग ग्लाइडिंग और पैराग्लाइडिंग जैसे रोमांचित करने वाले खेलों के लिए बिलिंग को हिमाचल ही नहीं, समूचे एशिया का सर्वाधिक उपयुक्त स्थल माना जाता है। बिलिंग पहुंचने के लिए बीड़ से होकर गुजरना पड़ता है। बीड़ में तिब्बती शरणार्थियों की एक बस्ती है और पगोडा शैली में निर्मित भव्य मंदिर भी। समूचे क्षेत्र में चाय के बागान हैं। इन बागान की सोंधी-सोंधी महक और बौद्ध मंदिर से उठती ‘ओम् मणि पद्मे हुम्’ की गूंज सैलानियों को अभिभूत कर देती है। बीड़ से बिलिंग का फासला 14 किमी है। बस यहां नहीं जाती, लेकिन टैक्सी या जीप के लायक सड़क जरूर है जो घने जंगलों और खतरनाक मोड़ों से गुजरती हुई बिलिंग तक ले जाती है।
समुद्रतल से 85000 फुट की ऊंचाई पर स्थित बिलिंग में पहुंचते ही यूं लगता है मानो आसपास के पहाड़ हमारे लिए बौने पड़ गए हों और हम अंतरिक्ष में तैर रहे हों। इस घाटी में और इसके आसपास कोई बस्ती नहीं है, लेकिन 1984 में जब यह घाटी हैंग ग्लाइडिंग जैसे साहसिक खेल की वजह से विश्व के मानचित्र पर उभरी तो खेल प्रेमियों का हुजूम यहां उमड़ आया। यह घाटी ऊपर से थोड़ी समतल है और यहां एक साथ तीन दर्जन हैंग ग्लाइडर खड़े किए जा सकते हैं। रोमांचक खेलों के विशेषज्ञ इसे हैंग ग्लाइडिंग और पैराग्लाइडिंग के लिए दुनिया में सबसे उपयुक्त जगह मानते हैं। हैंग ग्लाइडर और पैराग्लाइडर में फर्क केवल इतना ही है कि हैंग ग्लाइडर में बादवानों और पंख लगे होते हैं और पायलट इन पंखों के बीच सुविधाजनक स्थिति में लटक जाता है तथा हवा में उड़ने लगता है। जबकि पैराग्लाइडर पैराशूट के सिद्धांत पर बना है और हैंग ग्लाइडर की तुलना में हलका और सस्ता भी होता है।
खेलों का आयोजन
पैराग्लाइडिंग के लिए कुल्लू की सोलंग घाटी भी मशहूर है। यहां पैराग्लाइडिंग के साथ-साथ हिमानी क्रीड़ाओं का भी आयोजन होता है। कई बार यहां राष्ट्रीय शीतकालीन खेल आयोजित हो चुके हैं। मनाली नगर से सोलंग घाटी की दूरी महज 13 किमी है। समुद्रतल से 2480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सोलंग में प्रकृति की अनुपम छटा देखते ही बनती है। रई, तोश और खनोर के पेड़ वातावरण में संगीत घोलते से लगते हैं। यहां पैराग्लाइडिंग का रोमांच लेने देश भर से युवक-युवतियां आते हैं और घाटी के आकाश में सजा रंग-बिरंगी छतरियों का संसार देखते ही बनता है।
कांगड़ा जिले की चामुंडा पीक, मंडी की जोगिंद्रनगर घाटी और बिलासपुर की बंदला घाटी ने भी पैराग्लाइडिंग के शौकीनों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बिलासपुर की बंदला घाटी से उड़ान भरने के बाद जब रंग-बिरंगी छतरियां गोविंदसागर झील के किनारे लुहणू में उतरती हैं तो यह दृश्य देखकर लोग रोमांचित हो उठते हैं। चामुंडा पीक से उड़कर धर्मशाला से जोगिंद्रनगर तक हवाई सफर रोमांच से भरपूर है। यहां से उड़ान भरने के लिए देश-विदेश के तमाम रोमांचप्रेमी लालायित रहते हैं।
अगर आप स्वयं पैराग्लाइडिंग करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको 15 दिन का प्रशिक्षण लेना होगा। इस प्रशिक्षण पर हिमाचल प्रदेश में 10 से 15 हजार रुपये तक का खर्च आता है। अगर आप पहले ही प्रशिक्षण ले चुके हैं और केवल उड़ान भरना चाहते हैं तो एक घंटे की हवाई सैर पर आपको दो से तीन हजार रुपये तक खर्च करने होंगे। वैसे कुछ पायलटों के साथ पांच-दस मिनट के लिए हवाई सैर भी कर लेते हैं। इस पांच से सात सौ रुपये तक का खर्च आता है।