रहस्य-रोमांच से भरपूर जंगल की दुनिया

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शहरों का भ्रमण इतिहास, कला, संस्कृति व तकनीक को जानने के लिए जितना महत्वपूर्ण है, प्रकृति और जीवन के विविध रंगों को देखने और महसूस करने के लिहाज से उतनी ही रोचक है जंगलों की यायावरी।

वैसे भी शहरों की आपाधापी व शोरगुल से ऊबा मन अगर कहीं शांति पाता है तो जंगलों में ही। लुप्त होते वन्य प्राणियों को बचाने के इरादे से भारत में कई वनक्षेत्रों को अभयारण्य तथा राष्ट्रीय वन्यप्राणी उद्यान घोषित किया जा चुका है। यहां तरह-तरह के वन्य जंतुओं को प्राकृतिक परिवेश में स्वच्छंद विचरते देखा जा सकता है। इसीलिए राष्ट्रीय उद्यान तथा अभयारण्य आज प्रकृतिपे्रमी पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं। जंगल की यह दुनिया जितनी सुंदर और शांत है उतनी ही रहस्यपूर्ण व रोमांचक भी है। भारत के जंगलों में पक्षियों के मुकाबले जानवरों को देखने में अधिक कठिनाइयां आती हैं। यहां के जंगल घने हैं। यहां की तुलना में अफ्रीकी जंगल अधिक खुले-खुले हैं। वहां जानवरों के बड़े-बड़े झुंड दिखाई देते हैं। यहां जानवर न केवल छोटे झुंडों में बल्कि कभी-कभी अकेले भी दिखाई देते हैं। फिर भी कई राष्ट्रीय उद्यानों में इन्हें देख पाना अब सुलभ हो गया है। हालांकि ये उद्यान हमेशा खुले नहीं रहते हैं, पर उत्तर और मध्य भारत में राष्ट्रीय उद्यानों के खुलने का समय यही है। उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान इस मामले में खास तौर संपन्न राज्य हैं।

दुधवा में देखें तेंदुआ

उत्तर प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण पार्क है दुधवा नेशनल पार्क। 1965 तक यह वन्य जीव अभ्यारण्य था। भारत-नेपाल सीमा पर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित इस पार्क का उत्तर भाग नेपाल की सीमा से लगा है तथा इसके दक्षिणी छोर पर सुहेल नदी है। पशु-पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियां यहां पाई जाती हैं। तेंदुआ यहां का मुख्य आकर्षण है। भारतीय गैंडे को यहां खास संरक्षण में रखने से इसकी संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। बारहसिंगे भी यहां खूब हैं। यहां ग्रेट इंडियन, ब्राउन फिश, फॉरेस्ट ईगल, टॉनी फिश व हॉ‌र्न्ड आउल के अलावा जंगल आउलेट, कई तरह के सारस और स्टॉकर्स भी पाए जाते हैं।

बाघों का घर कॉर्बेट

यह उद्यान उत्तरांचल राज्य के पौढ़ी गढ़वाल तथा नैनीताल के पहाड़ों में है। विशेष रूप से बाघ, तेंदुए और हाथियों के लिए प्रसिद्ध इस पार्क के क्षेत्रफल को बढ़ाने हेतु कई योजनाओं पर कार्य चल रहा है। इस पार्क में चार प्रकार के हिरण (चीतल, पाड़ा, ककड़ और बार्किग डीयर), जंगली सुअर, काला भालू, सोन कुत्ता, गीदड़, नेवला, लंगूर, बंदर आदि भी पाए जाते हैं। पार्क के दक्षिण में कालागढ़ बांध है। यहां के पानी में कई देशी-विदेशी जलपक्षी शरण लेते हैं। लंबे थूथने वाले घडि़याल व मगरमच्छ धूप सेंकते दिखाई देते हैं। स्तनधारी वन्य प्राणियों की  50, पक्षियों की 580 तथा रेंगने वाले जीव-जंतुओं की 25 प्रजातियां यहां देखी गई हैं। कई तरह की बत्तखें, बार हेडड गूज, ग्रेलैग, ग्रेट क्रेस्टड ग्रेब, स्नाइप, सैन्ड पाइपर,, प्लोवर, गल, वागटेल, डार्टर, कौरमोरेंट, इग्रेट, हेरोन के्रस्टड सरपेंट ईगल आदि यहां पाई जाती है। मानसून में जून से अक्टूबर तक पार्क बंद होता है। यहां भारी वर्षा होती है। सर्दियों में अच्छी ठंड तथा गर्मियों में काफी गर्मी होती है।

बांधवगढ़ में इतिहास दर्शन

मध्य प्रदेश का यह जंगल बाघों के लिए प्रसिद्ध है। प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत यह टाइगर रिजर्व भी है। इस क्षेत्र में प्रकृति व इतिहास का अनूठा संगम देखने को मिलता है। यहां वनक्षेत्र में ही मौजूद एक किले में 2000 वर्ष पुराना मंदिर तथा 18वीं सदी में बनी गुफाएं हैं। माना जाता है कि श्रीराम जब रावण को मारकर तथा वनवास के बाद अयोध्या लौट रहे थे तो नल और नील ने यह किला बनाया था जिसे प्रेमपूर्वक भगवान ने अपने भाई लक्ष्मण जी को सौंपा था। तबसे इस किले का नाम बांधवगढ़ पड़ा। बाघ यहां खूब हैं। इसके अलावा रीछ, हिरण, सांभर, सियार, जंगली सुअर, लंगूर, लोमड़ी, बंदर, बारहसिंगा, बिच्छू, सेही आदि यहां पाए जाते हैं। पक्षियों में पीले और नारंगी रंग के पंखों वाली गोल्डन औरियल, जंगली मुर्गा, नीलकंठ, हरे कबूतर, रैकेट ट्रेल, ड्रोंगो, पैराडाइज फ्लाईकैचर, मोर, फाख्ता, बाज, धनेश, मैना, जलकौआ, ब्राउनफिश आउल, गिद्ध, क्रेस्टड सरपेंट ईगल आदि इस जंगल की धरोहर हैं।

उद्यान में जीप तथा हाथी, दोनों द्वारा जाया जा सकता है। बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान जाने के लिए रेलमार्ग से उमरिया पहुंचकर वहां से जीप आदि से 32 किमी का रास्ता तय करके पहुंचा जाता है।

सबसे बड़ा उद्यान कान्हा

मध्य प्रदेश का कान्हा राष्ट्रीय उद्यान देश का सबसे बड़ा उद्यान है। राज्य के पठारी भाग में फैले इस उद्यान से ही रुडयार्ड किपलिंग को जंगल बुक जैसी प्रसिद्ध कृति एवं मोगली जैसे चरित्र रचने की प्रेरणा मिली। प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत कान्हा का जंगल टाइगर रिजर्व भी है। कुछ तरह के हिरण, सांभर, लंगूर, बंदर, सियार, काले मृग, चौसिंगा, नील गाय, जंगली सुअर, बारहसिंगा, बार्किग डीयर, खरगोश, गौर, सोन कुत्ता आदि यहां पाए जाते हैं। कभी-कभी जंगल में घूमते समय पेड़ से उतरता या सड़क के किनारे घूमता तेंदुआ भी दिख जाता है।

यहां पक्षियों की लगभग 260 प्रजातियां देखी गई हैं। मोर, हरे कबूतर, नीलकंठ, जंगली मुर्गा, रैकेट ट्रेल ड्रोंगो, ट्री पाई, प्लाई केयर, गिद्ध,  बाज, धनेश, मैना, जलकौआ, सारस, ब्राउन फिश आउल तथा अन्य कई पक्षी देखे जा सकते हैं। सबसे बड़ा उद्यान बनने से पहले समय-समय पर इसमें आस-पास के क्षेत्रों को जोड़ा गया। एक विशेष कानून बनाकर इस क्षेत्र को 1955 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत कई अन्य क्षेत्र कान्हा में जोड़े गए। साल के जंगल, हरे भरे मैदान तथा सुलकुम और बंजर मौसमी नदियां, ये सभी इसके  नैसर्गिक सौंदर्य की सीमाएं तय करते हैं।

रणथंभौर के बेखौफ बाघ

दिल्ली-मुंबई रेलवे लाइन पर राजस्थान में सवाई माधोपुर नामक स्थान है। यहां से 14 किमी दूर रणथंभौर नेशनल पार्क है। वन में रणथंभौर नामक ऐतिहासिक किला है। इसी के नाम पर पार्क का नाम रखा गया है। बाघों के लिए प्रसिद्ध इस उद्यान का क्षेत्रफल में 410 वर्ग किमी है। जयपुर के महाराजाओं का किले पर अधिकार था और यहां के जंगल उनकी शिकारगाह थे। 1972 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिजर्व बना दिया। कहा जाता रहा है कि यदि बाघ देखना हो तो रणथंभौर जाना चाहिए। यहां बाघ अब मनुष्यों से नहीं घबराते। इन्हें दिन में घूमते तथा शिकार करते हुए देखा जा सकता है।

कभी-कभी अपने बच्चों के साथ अस्वाभाविक रूप से निश्चिंत होकर विचरते दिख जाते हैं। ऊपरी    भागों में तेंदुआ मिल जाता है। यहां रीछ, लकड़बग्घा, सांभर, चीतल,नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा, नेवला, खरगोश भी पाए जाते हैं। पक्षियों में चील, क्रेस्टड सरपेंट ईगल, ग्रेट इंडियन हॉ‌र्न्ड आउल, तीतर, पेंटेड तीतर, क्वैल, स्परफाइल मोर, ट्री पाई और कई तरह के स्टॉर्क देखे जा सकते हैं। यहां राजबाग तालाब, पदम तालाब, मिलक तालाब जैसे सुंदर स्थल अनेक प्रकार के जानवरों को आकर्षित करते हैं और इनका शिकार करने की कोशिश में रहते हैं मांसाहारी जानवर। इस पार्क की झीलों में मगरमच्छ भी हैं।

पक्षियों का विहार केवलादेव

राजस्थान में भरतपुर स्थित केवलादेव घना राष्ट्रीय पार्क विश्व के अति सुंदर पक्षी विहारों में से एक है। 1981 में घोषित इस राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 29 वर्ग किमी है। यहां कम गहरी झीलें और जंगल हैं। देशी तथा विदेशी पक्षियों की इस सैरगाह में लगभग 350 पक्षी प्रजातियां शरण लेती हैं। इनमें एक-तिहाई प्रजातियां प्रवासी पक्षियों की हैं। इनमें से बहुत से मेहमान करीब छह हजार किमी की दूरी तय कर साइबेरिया और मध्य एशिया से शीतकाल में यहां आते हैं। ये पक्षी यहां घोंसले बनाते हैं और वंशवृद्धि करते हैं। अप्रैल मास में ये अपने मूल स्थान को लौट जाते हैं। दस हजार से अधिक घोंसले और 20 से 30 हजार तक नए जन्मे पक्षी यहां देखे गए हैं। पक्षियों के प्रजनन के लिए घना पार्क विश्व भर में सबसे अच्छा माना गया है। कई प्रकार के सारस, दुर्लभ साइबेरियन क्रेन, पेंटेड स्टार्क, ग्रे हेरोन, ओपन बिल, स्पून बिल, सफेद इबिस, बगुला, जलकौआ, जलमुर्गा, दलदल में रहने वाले जंगली मुर्गे-मुर्गियां, किंगफिशर, हरा कबूतर, नीलकंठ कई तरह की बत्तखें, हंस, बाज, चील, क्रेस्टेड सरपेंट ईगल आदि पक्षी यहां स्वछंद उड़ते और विचरण करते मिलते हैं। चीतल, सांभर, नीलगाय, ऊदबिलाव, जंगली सूअर, काला हिरण आदि भी यहां खूब हैं। वन विभाग के अनुसार यहां एक क्षेत्र में बाघ भी देखा गया है जिसकी चेतावनी सैलानियों को दे दी जाती हैं। एक स्थान पर अजगर भी देखा जा सकता है। पार्क में बहने वाली एक नहर इसे दो हिस्सों में बांटती है। इसमें नाव भी चलती हैं जिनसे जंगल में घूमा जाता है। वैसे पार्क में साइकिल रिक्शा से जाया जाता है।

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