जहां बर्फ जीवनदायिनी है

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जापान में विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों के मंथन (जी-8) के लिए जब होकायडो द्वीप को चुना गया तो निस्संदेह यहां की बेमिसाल खूबसूरती, साफ आबोहवा, समृद्ध संस्कृति और विकास के एक से बढ़कर आयाम को मद्देनजर रखा गया। जापान की कोशिश भी यह रही कि अतिविशिष्ट मेहमान यहां से ऐसी मधुर स्मृतियां लेकर जाएं जो उन्हें ताउम्र न भुला सकें। वाकई ऐसा हुआ भी।’सी ऑफ जापान’ और ‘पैसिफिक ओशन’ के बीच घिरे होकायडो द्वीप में कई जगह बेहद ठंड रहती है। यहां तापमान शून्य से भी 20 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। लेकिन जापान ने बर्फ को ही अपनी ऊर्जा बना लिया है। वैज्ञानिक तरक्की के ऐसे नायाब उदाहरण यहां हैं जो दुनियाभर के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।

समुद्र के भीतर एयरपोर्ट

होकायडो के लिए यात्रा की शुरुआत क्योटो शहर से हुई। क्योटो के कंसाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट से उड़ान थी। सफर की शुरुआत में ही तरक्की का अनूठा उदाहरण था यह एयरपोर्ट। जापान चूंकि समुद्र के बीच स्थित छोटा देश है लिहाजा यहां जमीन की बहुत कमी है। इस एयरपोर्ट को समुद्र के भीतर बनाया गया है।

ओसाका खाड़ी में अप्राकृतिक तौर पर छोटा सा द्वीप बनाया गया। इस पर 4 हजार मीटर लंबा रनवे बना कर यहां से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भरी जाती हैं। एशिया, उत्तरी अमेरिका, पश्चिम एशिया व यूरोप के लिए सप्ताह में करीब 700 उड़ानें समुद्र के बीच बने एयरपोर्ट से भरी जाती हैं। करीब दो घंटे बाद जापान की सबसे बड़ी घरेलू एयरलाइन एएनए से चीतोस एयरपोर्ट पहुंचे। होकायडो के सबसे बड़े शहर सपोरो पहुंचने से पहले है विंडसौर टोया रिजॉ़र्ट, जहां जी-8 के राष्ट्राध्यक्षों को ठहरना था। सामने प्रशांत महासागर और पीछे धरती से फूटते ज्वालामुखी। प्रकृति के कई रंग इस सुंदर जगह में समाए हैं। वैसे भी प्रकृति की अनमोल देन का सदुपयोग करना कोई जापानियों से सीखें। टोयाको होकायडो के सपोरो शहर के काफी नजदीक टोयाको। टोयाको सिटी अपने धधकते ज्वालामुखी के लिए पहचानी जाती है। भले ही गरम लावे ने शहर के आधे हिस्से को राख कर दिया हो लेकिन अपनी मिट्टी से लगाव रखने वाले जापानियों ने पर्यावरण सहेजने में मिसाल कायम की है। साफ-सुथरी सड़कें और लहलहाते खेतों से भरी पहाडि़यां हर किसी को बरबस ही अपनी ओर खींच लें। चूंकि मौसम ठंडा रहता है इसलिए पॉलिहाउस में आधुनिक तकनीक से बेमौसमी सब्जियां जापान यहां उगा लेता है।

यहां का माउंट उसू ज्वालामुखी बीते चार बरस में चार बार फटा है। यहां रहने वाले आससूजी कहते हैं ‘1943, 1953, 1977 के बाद वर्ष 2000 में जब ‘मदर वोलकैनो’ के साथ जगह-जगह दूसरे ज्वालामुखी निकलने लगे तो लगा कि जिंदगी कैसे चलेगी। लेकिन साथ ही गर्म पानी के चश्मे भी निकल आए और यही गर्म पानी हमारी समृद्धि का जरिया बन गया’। दरअसल जब यहां भूकंप आते हैं तो छोटे-छोटे ज्वालामुखी फटते हैं, साथ ही गर्म पानी के चश्मे निकल जाते हैं। जापानियों ने इस गर्म पानी से ‘हीट पंप स्टेशन’ बना दिए हैं। टोयाको शहर के 50 फीसदी होटलों में दिन रात गर्म पानी इसी हीट स्टेशन से मिलता है। टोयाको में स्पॉ एसोसिएशन भी पर्यटकों को प्रकृति की इसी अनूठी देन पर लुभाती है।

सपोरो

भारत समेत कई देशों में बर्फ तो पड़ती है लेकिन सपोरो में जापान ने बर्फ का जैसा सदुपयोग किया है वह काबिले तारीफ है। एक साल में सपोरो शहर में 6 मीटर (करीब 20 फुट) बर्फ गिरती है। दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां इस तरह से बर्फ इकट्ठा की जाती हो। बड़े-बड़े टैंकों में इस बर्फ को इकट्ठा किया जाता है और पूरा साल इसके पानी का प्रयोग होता है। जी-8 की होकायडो- टोयको शिखर बैठक का आयोजन जहां हुआ वहां के नलकों में भी इसी तरह की इकट्ठी की हुई बर्फ से बना पानी दिया गया। बर्फ का मजा लेना हो तो यहां फरवरी में ‘स्नो फेस्टिवल’ जरूर देखना चाहिए। शहर की प्रमुख सड़कों से लेकर पार्कोतक में बर्फ की विशाल मूर्तियां बनाकर रखी जाती हैं। वैसे समुद्र से भी बर्फ के बड़े-बड़े ढेले निकाल कर एयरकंडीशनिंग के लिए प्रयोग होते हैं।

अद्भुत कारीगरी

शहर घूमना हो तो बहुत से यातायात साधन यहां हैं। टैक्सी, लग्जरी कारें, बसें व ट्रेन इत्यादि। लेकिन स्ट्रीट कार व सासारा ट्रेन शहर को अच्छे तरीके से देखने में मदद करते हैं। चूंकि यह धीरे-धीरे चलतीं हैं इसलिए पर्यटकों के लिए यह फायदेमंद है। सासारा ट्रेन के आगे-पीछे बांस के बड़े-बड़े रोलर होते हैं जो बर्फ को भी सड़क से साफ करते हैं। होकायडो द्वीप में सपोरो के पास ही मूरोरन जगह न जाएं तो यात्रा पूर्ण नहीं कही जा सकती। दरअसल यह इलाके का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र है। मुरोरन बंदरगाह से जापान का सबसे बड़ा स्टील प्लांट सटा है। दुनियाभर में इसी प्लांट से न्यूक्लीयर रिएक्टर्स के लिए प्रयोग होने वाले स्टील सिलेंडर बनकर जाते हैं। हिंदुस्तान में भेल के लिए भी इसी जगह से स्टील का उत्पाद बन कर जाता है। क्षेत्र के लोग भारत को ‘स्टील किंग-लक्ष्मी मित्तल’ के देश से जानते हैं। इस इलाके का दिन में ही नहीं रात में भी विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। मूरोरन में मोराएरुनुमा पार्क, पर्यावरण मित्र वस्तुओं पर आधारित है। विश्वविख्यात मूर्तिकार इसामु नागूची ने जब इसे बनाया तो यह दिखाने का प्रयास हुआ कि प्रकृति की अनमोल देन का किस तरह सदुपयोग हो सकता है।

29augytp4a08योजनाबद्ध ढंग से पेड़ लगाना, बर्फ इकट्ठा करके बड़े-बड़े गोदामों में रखना और सालभर इसी से एयरकंडीशनर चलाना- अद्भुत कारीगरी का नमूना है।जापान की संस्कृति को समझना हो तो ‘आयनो समुदाय’ को देखना ना भूलें। यहां आयनो लोगों का एक म्यूजियम है। सपोरो का नाम आयनो भाषा से ही लिया गया। इसका मतलब होता है ‘धरातल के साथ चलती नहीं’।    यह शहर काफी बड़ा है और ठंड के कारण यहां गर्म वस्त्रों का फैशन सबसे पहले देखने को मिलता है। कोट, ओवर कोट के डिजाइन हों या टोपी, मफलर या दस्ताने, ‘सपोरो स्टाइल’ पूरे जापान में चलता है। यहां लोग अपनी परंपरागत ड्रेस को छोड़ कर अत्याधुनिक फैशन वाले कपड़े पहनते हैं। शायद ही कोई महिला हो जो पेंसिल हिल वाले सैंडेल में छोटे-छोटे कदमों से ना चलती हो। हाथ में पर्स के साथ खूबसूरत छाते जरूर रहते हैं, खास तौर पर धूप से बचने के लिए।

संस्कार व तहजीब का देश

जापान की करेंसी ‘येन’ है और कई अन्य देशों की तुलना में यह काफी महंगा है। यहां खानपान पर ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ती है। लेकिन यहां क्वालिटी पर पूरा नियंत्रण है। हालांकि जापान के बाजार अब चीनी वस्तुओं से अटे पड़े हैं लेकिन उसमें भी क्वालिटी की गारंटी होती है। हम जिस भी रेस्तरां में बैठे वहां मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक है। यही नहीं यात्रा करते हुए भी कोई मोबाइल पर बात नहीं कर सकता ताकि दूसरे व्यक्ति को बातचीत से दिक्कत न हो। संस्कार व तहजीब का भी जापानी लोग खास ख्याल रखते हैं। मुलाकात में जो व्यक्ति जितना गहरा झुकता है उसका अभिनंदन उतना ज्यादा होता है। घरों के भीतर जूते के साथ नहीं जाया जाता, लेकिन आगंतुकों के लिए बढि़या किस्म की चप्पलें घरों में दी जाती हैं। हरेक मिलने वाला जब अपना विजिटिंग कार्ड देता है तो दोनों हाथ से झुक कर दिया जाता है, इसे तहजीब का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। ग्रीन चाय के शौकीन जापानी लोग, इसमें मीठा नहीं पीते। खाने में भी कम नमक का उपयोग करते हैं। संभवतया उनके चुस्त-दुरुस्त रहने का यह एक बड़ा कारण है। मदिरा पान करते हुए भी एक-दूसरे को गिलास दिया जाता है और पहले दूसरे को ड्रिंक डाली जाती है फिर खुद पीते हैं।

जापानी लोगों को कोई मिले तो पहली ही मुलाकात में आत्मीयता झलकती है, ये लोग हमेशा मदद को तैयार रहते हैं। लेकिन यहां समस्या केवल और केवल भाषा को लेकर ही है। सभी लोग जापानी ही बोलते व समझते हैं। बहुत ही कम लोग अंग्रेजी में संवाद करते हैं। ऐसे में यदि आप जापान जाने का प्रोग्राम बनाएं तो जरूरत की जरूरी बातें जापानी में समझ कर जाएं। जहां भी ठहरें वहां का नक्शा जरूर साथ ले लें। वैसे जापान को बढि़या तरीके से घूमना हो तो ‘इंटरप्रेटर’ के बिना यात्रा संपूर्ण नहीं हो सकती।

जापान के उत्तरी द्वीप होकायडो के दक्षिण-पश्चिम किनारे पर बसा है सपोरो नहर। टोकयो, योकोहामा, ओसाका व नागोया के बाद जनसंख्या की दृष्टि से जापान का पांचवां बड़ा शहर है। यहां की आबादी में 70 फीसदी लोग नौकरीपेशा हैं।

तापमान

मौसम चूंकि काफी सर्द रहता है, इसलिए अपने साथ गर्म कपड़े जरूर रखें। छाता रखना फायदेमंद होगा। यहां औसतन तापमान 9.1 डिग्री सेल्सियस रहता है। सपोरो में तो मौसम फिर भी ठीक रहता है, लेकिन होकायडो के अन्य शहरों जैसे वाकानाई में तो जून के महीने में पांच डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान होगा।

हवाई यात्रा सुविधा

टोकयो (हनीडा)-सपोरो (चितोस): 90 मिनट

नागोया (चुबू)-सपोरो (चितोस): 100 मिनट

ओसारा (इतामी)-सपोरो (चितोस): 115 मिनट

फुकूओका-सपोरो-155 मिनट

सपोरो के चितोस एयरपोर्ट से ट्रेन व बसें चलती हैं। बसें सुरक्षित हैं और आपको निर्धारित स्टेशन के बारे में बस में ही सूचना लिखी मिलती है। बसों व टैक्सियों में नेवीगेटर व्यवस्था है। आप कहां है और आपकी मंजिल कितनी दूर है सबकुछ नेवीगेटर से पता चल जाता है, बशर्ते जापानी भाषा का थोड़ा बहुत ज्ञान हो। ऐसा भी संभव है कि भाषाई अज्ञानता के कारण अंग्रेजी में आप पूछें कुछ और पहुंच कहीं जाएं। वैसे यदि भारत से आप जापान आना चाहें तो जापान की अपनी ‘जाल एयरलाइंस’ सीधे आठ घंटे में टोकयो आती है। जापान की एएनए घरेलू विमान सेवा होकायडो के अलावा अन्य सभी राज्यों में जाती है।

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