जंगल से अपनापा

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असीम विस्तृत जंगल के कच्चे रास्ते पर हमारी खुली लैंड रोवर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रही थी। समूचे वन्य प्रांत में अभी उनींदापन सा तारी था। परिंदों ने पर फड़फड़ाने शुरू किए थे। लगभग छह-सात डिग्री तापमान के बीच तेज सर्द हवा के चलते रह-रह कर कंपकपी छूटती थी। सूरज की पहली किरण सिर्फ रोशनी का अहसास करा थी, उसमें इतना गुनगुनापन भी नहीं था कि हमें थोड़ी राहत मिलती..और तभी एक गमक भरी गरजती सी गंभीर गुर्राहट ने हमारे माथे पर पसीने की बूंदें छिटका दीं। ऊंची घास के बीच हल्की सी सरसराहट हुई और सिर्फ कुछ हाथ की दूरी पर हमारे सामने वनराज। उसका हौले से सिर उठाना, सलीके से सिंहावलोकन करना और फिर मस्त चाल से हमारी और बढ़ना। हमारे रेंजर गाइड पीटर ने ऐसे मौकों के लिए हमें जो जंगल के कायदे कानून सिखाए थे, सहमे हुए हालात में उनका सौ प्रतिशत खुद ब खुद पालन होता गया। फिर पीटर ने ही इशारे से हमें चेताया कि आखिर आपके पास ये जो कैमरे हैं, किस लिए हैं?

वाइल्ड लाइफ गेम सफारी

हम माबुला में थे। माबुला वाइल्ड लाइफ गेम सफारी। दक्षिण अफ्रीका की राजधानी जोहांसबर्ग से लगभग दो घंटे की दूरी पर। ऊंचे पर्वतों की लंबी श्रृंखला की तलहटी में प्राकृतिक छटा और वन संपदा से भरपूर इलाका। दूर-दूर तक जहां तक नजर जाती सिर्फ जंगल और जंगल। इसी बियाबान जंगल के एक अतरे में हमने माबुला गेम लाज में अपना ठिकाना तय किया था। लगभग पंचतारा सुविधाओं से सज्जित इस गेम लाज के प्रति अनायास उपजे लगाव का एक कारण यह जानकारी भी थी कि इसे संचालित करने वाली कंपनी पर मालिकाना हक अपने मुल्क के किंगफिशर फेम विजय माल्या का है। शायद यह भी एक वजह है कि सुदूर भारत से आने वाले अधिसंख्य पर्यटक दक्षिण अफ्रीका के सफर में माबुला को अपना मुकाम जरूर बनाते हैं। जंगल, जानवर और आदम जात एक साथ कैसे गुजर बसर कर सकते हैं, ये हमने माबुला में नजदीक से देखा। ये हमने उन रोमांचकारी क्षणों में भी महसूस किया जब जंगल में यकायक आपके सामने पूरे परिवार के साथ वनराज हों या भीमकाय गजराज। आप एक बार भले ही सिहर उठें लेकिन आपकी अनुशासित मौजूदगी से उनकी दिनचर्या में कोई खलल नहीं पड़ता, यही जंगल का कानून है।

माबुला में वन्य जीवों की भरमार है-वनराज और गजराज के अलावा जिराफ, जेबरा, तेंदुआ, हिरन, बारासिंघा, रेनडियर, इंपाला, आस्टि्रच, गैंडा, जंगली भैंसे और परिंदों की असंख्य किस्में। हम तो सभी सुविधाओं से सज्जित माबुला गेम लाज में ठहरे थे, जिसे काफी हद तक सुरक्षित कहा जा सकता है लेकिन जंगल से अपनापा कायम करने की चाहत रखने वालों के लिए यहां और भी मौके हैं। आप चाहें तो जंगल के कतई बीचोबीच टेंट सफारी कैंप में भी रह सकते हैं-कुछ सीमित दुनियावी सुविधाओं के साथ कतई आदिवासी जीवनशैली के तहत। ऐसे ही एक टेंट से थोड़ा हटकर तमाम जमींदोज दरख्तों की और इशारा करते हुए वहां के एक कर्मचारी ने बताया कि कल रात ही चिंघाड़ते हुए हाथियों के एक झुंड ने यहां खूब मस्ती काटी थी और तीन-चार दिन पहले गैंडों का एक कुनबा हमारी रसोई की चौखट तक चहलकदमी करते हुए यहां ताकझांक कर गया था। उसने हमें गैंडों के ‘पग मार्क’ भी दिखाए। सुबह शेर परिवार से कंपकपी भरी मुलाकात के बाद अब हम इतने सहज हो गए थे कि अगला मौका लगा तो इन्हीं टेंट में गुजर बसर होगी। माबुला गेम लाज की एक खास बात ये भी है कि परंपरागत दक्षिण अफ्रीकी व्यंजनों के बीच आप सुबह के नाश्ते में आलू की तरकारी और पराठों का स्वाद ले सकते हैं तो दोपहर या रात के भोजन में बैंगन का भर्ता और राजमा चावल शाकाहारियों को थोड़ा घरेलू सुकून देता है। अगर आपकी ख्वाहिश है तो साथ में राबर्टसन वैली की वाइन की चुस्कियां भी ले सकते हैं।

थीम रिसार्ट होटल

माबुला में जंगल में मंगल के बाद आप चाहें तो सन सिटी की और रुख कर सकते हैं जहां के ‘द पैलेस आफ लास्ट सिटी रिसार्ट होटल’ को दुनिया के सबसे विशाल थीम रिसार्ट होटल का दर्जा हासिल है। इस रिसार्ट परिसर में एक दूसरे से आबद्ध अलग-अलग श्रेणी के कुल तीन होटल हैं। जोहांसबर्ग से सिर्फ दो घंटे की ड्राइव में स्थित इस रिसार्ट परिसर के बारे में बताया जाता है कि प्राचीन काल में इसी जगह एक आदिवासी सम्राट का शानदार महल हुआ करता था। उस सम्राट की प्रसिद्धि परंपरागत तरीके से शानदार मेहमानवाजी के लिए भी थी। कहते हैं कि एक जबर्दस्त भूकंप में सब कुछ तहस नहस हो गया। दावा ये है कि उसी प्राचीन महल के बुनियादी वास्तु को ध्यान में रखते हुए इस होटल का निर्माण किया गया है। प्रकृति के साथ तादात्म्य रखते हुए इंजीनियरिंग कौशल के बूते भव्यता की अद्भुत तामीर की मिसाल कह सकते हैं इस जगह को। मनोरम समुद्र तट पर अठखेलियां करती लहरें, पहाड़ों पर जगह-जगह बहते झरने, विशाल झील और नदियों का संजाल, विश्वास कीजिए ये सब कृत्रिम है, इंसानी कल्पनाशक्ति की देन है लेकिन जब आप यहां की आबोहवा में वक्त गुजारेंगे तो प्राकृतिक संरचना और आदमीयत की देन में सूत बराबर फर्क करना मुश्किल हो जाएगा।

भारतीय पर्यटकों और दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के लिए ये पसंदीदा जगह है। यही वजह है कि आपको यहां पर खास इंडियन रेस्तरां भी मिल जाएगा। अगर आपका बजट साथ देने की स्थिति में है तो आप यहां पर्यटन और मनोरंजन का अपार लुत्फ ले सकते हैं। ये रिसार्ट परिसर दक्षिण अफ्रीका के मशहूर पिलांसबर्ग नेशनल पार्क से सटा हुआ है। वन्य प्रेमियों के लिए इस नेशनल पार्क में एलीफैंट राइडिंग, बैलून सफारी, गोल्फ कार्ट राइडिंग और जीप सफारी की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा रिसार्ट परिसर में कैसीनो, तीरंदाजी, राइफल शूटिंग, वाटर स्कीइंग, वाटर स्कूटिंग के साथ-साथ दुनिया के मशहूर ब्रांड्स की शापिंग, सब एक परिसर के दायरे में। दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख बंदरगाह शहर केपटाउन जाएं और केप प्वाइंट तथा केप आफ गुड होप का सफर न तय करें तो आप प्रकृति के मनोरम दृश्य और इतिहास के एक चर्चित अध्याय को ‘मिस’ करेंगे।

केप प्वाइंट और केप आफ गुड होप

अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिण पश्चिम में टेबुल माउंटेन के एक छोर पर समुद्र की गहराई से होड़ लेती हुई ऊंची चोटियां हैं केप प्वाइंट और केप आफ गुड होप। एक दूसरे से सटी इन चोटियों की एक बांह समुद्र में काफी भीतर तक जाती है। इसके बारे में एक मिथक है कि ये अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर का संगम है, लेकिन ऐसा है नहीं। दरअसल प्राचीन काल से अटलांटिक महासागर के रास्ते एशिया और आस्ट्रेलिया का सफर तय करने वाले यूरोपीय यात्रियों के लिए ये वो जगह थी जहां से वे हिंद महासागर में प्रवेश करने के लिए तीखा मोड़ लेते थे। वास्तव में इन दो महासागरों का संगम स्थल यहां से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर केप आगुल्हा है। दो दिशाओं से तेज हवा की टकराहट, दुर्गम चट्टानें और उफनती लहरों के चलते ये जगह तमाम समुद्री दुर्घटनाओं की गवाह भी है। भारत की खोज में निकले पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा के काफिले ने 22 नवंबर, 1497 को यह जगह स्पर्श की। दूसरी दुनिया खोजने निकले यूरोपीय नाविकों के लिए चूंकि यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव था इसलिए पुर्तगाल के तत्कालीन किंग जान ने इसे ‘केप आफ गुड होप’ का नाम दिया था। इसके पहले एक पुर्तगाली नाविक बार्थोलोम्यू डायस ने इस जगह की दुर्गमता को देखते हुए इसे ‘केप आफ स्टा‌र्म्स’ की संज्ञा दी थी। डायस पहला नाविक था जिसने इस केप के दोनो तटों का चक्कर लगाया और सुरक्षित लौटा। ये बात 1488 की है, वास्को डी गामा के यहां आने से लगभग नौ साल पहले। सामान्य जलपोतों को चकनाचूर कर देने का माद्दा रखने वाली चट्टानों से टकराती खतरनाक तूफानी लहरों को देखकर आप उन महान ऐतिहासिक समुद्री नाविकों को सलाम किए बगैर नहीं रह सकेंगे जिन्होंने प्राचीन तकनीक वाली नौकाओं के बूते इस दुर्गम पथ का सीना चीरा होगा।

ग्लोबल एटमासफियर वाच स्टेशन

केप प्वाइंट पर बने लाइट हाउस को दुनिया का सबसे पुराना बताया जाता है। 1857 में बने इस लाइट हाउस के उपकरण एक पोत के जरिए इंग्लैंड से यहां तक लाए गए और उसे समुद्र तल से लगभग 240 मीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया गया। काफी ऊंचाई पर और शक्तिशाली होने के बावजूद यूरोप की दिशा से आने वाले नाविकों के लिए यह मददगार साबित नहीं हुआ। बाद में इसे थोड़ा अलग हट कर समुद्र तल से 87 मीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया गया। आप एक ट्राली ट्रेन के जरिये इस लाइट हाउस तक पहुंच सकते हैं और वहां लगे मार्ग निर्देशक यंत्र के जरिए दुनिया के प्रमुख शहरों की दिशा और दूरी का अनुमान लगा सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका के मौसम विभाग ने इस जगह की भौगोलिक और सामुद्रिक महत्ता को देखते हुए यहां पर ‘ग्लोबल एटमासफियर वाच स्टेशन’ स्थापित किया है। इस स्टेशन की लैब में पारिस्थितिकी में हो रहे बदलाव और उसके मौसम पर असर का अध्ययन किया जाता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मान्यता प्राप्त 20 वाच स्टेशनों में ये एक है। साउथ अफ्रीका का जिक्र हो और अंगूर की बेटी का जिक्र न हो। खालिस अंगूर से बनी वाइन अफ्रीकी परंपरा का अटूट हिस्सा तो है ही, वहीं इसका लगातार बढ़ रहा कारोबार अफ्रीकी अर्थव्यस्था में अहम योगदान करता है। वादियों के आंचल में विस्तृत अंगूर के बागान को यहां आम बोलचाल में वाइनयार्ड्स या वाइन स्टेट्स कहते हैं। दरअसल पहले अंगूर के बागवान खुद ही परंपरागत तकनीक से वाइन बनाते थे इसलिए उनके बागान और डिस्टिलरी एकमुश्त थे। अब इस उद्यम ने संगठित उद्योग की शक्ल ले ली है। अकेले राबर्टसन वाइन वैली में ही 51 वाइनरीज हैं।

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