आज के महाराजाओं के लिए

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मुंबई से दिल्ली की यात्रा में लगे आठ दिन और खर्च करने पडे कम से कम 6400 डॉलर (जी हां, 3.20 लाख रुपये) या आप चाहें तो इसी सफर के लिए बीस हजार डॉलर (यानी लगभग दस लाख रुपये) भी खर्च कर सकते हैं। अब आपको भले ही यह बात कुछ हवाई लगे लेकिन कुछ लोगों के लिए यह चर्चा दुनिया की सबसे राजसी और महंगी यात्रा की हो सकती है। कुछ ऐसा ही कोलकाता से मुंबई के इस सात सितारा सफर के बारे में भी कही जा सकती है।

महाराजा एक्सप्रेस भारत में पिछले दो सालों में पटरियों पर उतरने वाली तीसरी राजसी ट्रेन है। लेकिन महाराजा एक्सप्रेस ने देश के कई शहरों को पहली बार राजसी ट्रेन यात्रा के नक्शे से जोड़ा है। एक ही ट्रेन के बैनर तले चार यात्राएं हैं- मुंबई से दिल्ली, दिल्ली से मुंबई, कोलकाता से दिल्ली और दिल्ली से कोलकाता। इस तरह मध्य भारत के ज्यादातर हिस्से इस राजसी ट्रेन के जरिये घूमे जा सकते हैं।

महाराजा एक्सप्रेस इंडियन रेलवेज कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी) और भारत की सबसे बडी ट्रैवल कंपनियों में से एक कॉक्स एंड किंग्स के संयुक्त उपक्रम रॉयल इंडियन रेल टूर्स लि. की उपज है। इरादा- न तो दुनिया में कोई ऐसी जगह है, न ही दुनिया में कोई ऐसी यात्रा। लिहाजा, यह ट्रेन पश्चिम से पूरब तक देश के कई सांस्कृतिक आश्चर्यो, विरासत स्थलों, धार्मिक-ऐतिहासिक शहरों और वन्य जीव अभयारण्यों की सैर कराती है। ट्रेन की खूबियां कई हैं- इनमें इसके पांच सितारा रेस्तराओं में दुनियाभर के चटखारे, केबिन में तापमान नियंत्रण सिस्टम, इको-फ्रेंडली टॉयलेट व बाथरूम और वातानुकूलित कारों व बसों में शहरों का सैर-सपाटा शामिल है। हर केबिन में डायरेक्ट डायल फोन, सैटेलाइट टीवी और इंटरनेट की सेवा भी उपलब्ध है। ट्रेन का दावा है कि यह सफर यात्रियों का यादगार अनुभव देगा। और तो और डॉ. डी.एस. चावडा, मार्क टुली और माइकल बुएर्क जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लोगों की विशेषज्ञों के रूप में उपलब्धता अतिरिक्त आकर्षण है।

इस ट्रेन में 84 यात्रियों के लिए 23 कोच होंगे। सात दिन-छह रातों और आठ दिन-सात रातों के दो पैकेज रूट के हिसाब से उपलब्ध हैं। मुंबई से दिल्ली के रास्ते पर वडोदरा, उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जयपुर, रणथंबोर और आगरा शामिल होंगे। दिल्ली से मुंबई के सफर का नाम अलग होगा लेकिन सैर इन्हीं शहरों की होगी। मुंबई से दिल्ली जाते हुए सफर का नाम प्रिंसली इंडिया और दिल्ली से मुंबई जाते हुए रॉयल इंडिया होगा। वहीं दिल्ली से कोलकाता की यात्रा में आगरा के बाद ग्वालियर, खजुराहो, बांधवगढ, वाराणसी और गया शामिल हैं। कोलकाता से दिल्ली की वापसी यात्रा की अवधि और नाम, दोनों ही अलग हैं।

दिल्ली से कोलकाता जाते हुए इसे क्लासिकल इंडिया और कोलकाता से दिल्ली जाते हुए सेलेस्टियल इंडिया नाम दिया गया है। राजसी ट्रेन यात्राओं में एक नई परिपाटी डाली गई है। पहले पैलेस ऑन व्हील्स और फिर रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स में सफर एक शहर से शुरू करके, वहीं खत्म करने की परंपरा रही है। लेकिन डेक्कन ओडिसी और अब महाराजा एक्सप्रेस ने वहीं यात्रा खत्म करने की परंपरा को बदलकर देश के एक हिस्से से शुरू करके दूसरे हिस्से में सफर खत्म करने की परिपाटी डाली है। सैलानियों के लिए यह ज्यादा आसान है, खास तौर पर विदेश से आने वालों के लिए (राजसी गाडियों की सवारियों में उनकी संख्या ही ज्यादा है) क्योंकि उन्हें एक ही शहर दो बार नहीं जाना पडता और देश का ज्यादा हिस्सा कम समय में घूमने को मिल जाता है।

वैभव और विलास

अपनी इन चार यात्राओं के जरिये महाराजा एक्सप्रेस विलासिता पसंद सैलानियों को भारत की मूल धारणा से परिचित कराते हैं। इसीलिए इन चारों यात्राओं में शामिल शहरों का चुनाव बडी सावधानी से किया गया है। भारत के कुल 26 यूनेस्को विश्व दाय स्थानों में से 6 (आगरा किला, ताजमहल, खजुराहो मंदिर, कुतुब मीनार, महाबोधि मंदिर और चंपानेर-पावागढ) और दो सबसे शानदार टाइगर रिजर्व (बांधवगढ व रणथंबौर) इस यात्रा में शामिल हैं। तीर्थनगरी पावागढ पहली बार राजसी ट्रेन यात्रा के नक्शे पर आई है। यहां 114 समारक हैं, जिनमें मंदिर, मसजिद व दरगाह से लेकर जल संरक्षण प्रणाली, सैन्य ढांचे, किले, महल, निवास, आरामगाह, सब शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर ढांचे सन 1484 से लेकर 1535 के बीच बने थे। इनमें पावागढ पहाडी पर बना कालिकादेवी मंदिर और लाकुलिसा शिव मंदिर सबसे प्रमुख हैं। तत्कालीन राजधानी चंपानेर में महमूद शाह बेगडा द्वारा बनवाई गई जामा मसजिद अब भी अपनी भव्यता के साथ खडी है। दरअसल इस जामा मसजिद को दुनिया में मसजिदों के स्थापत्य के विकास के सबसे महत्वपूर्ण स्मारकों में गिना जाता है। पावागढ में कई जैन मंदिर भी हैं। सात कमान किला फोटोग्राफरों का पसंदीदा है। इस तरह पावागढ-चंपानेर में इसलामिक, राजपूत, जैन- सभी तरह का स्थापत्य मिल जाता है।

खजुराहो व बांधवगढ की यात्रा

खजुराहो व बांधवगढ भी यात्रा के प्रमुख आकर्षणों में से हैं। खजुराहो विदेशी सैलानियों के बीच काफी लोकप्रिय है और उसे रेल नेटवर्क से जुडे हुए भी ज्यादा वक्त नहीं हुआ। बांधवगढ और रणथंबौर, दोनों ही बाघ देखने के लिए देश में सबसे उपयुक्त रिजर्व में से एक माने जाते हैं। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के लिए फिट बांधवगढ ट्रेकर्स का भी पसंदीदा है क्योंकि रोमांच प्रेमियों के लिए वहां क्लाइंबर्स प्वाइंट, रामपुर पहाडी और सीता मंडप हैं। बांधवगढ किला भी स्थानीय स्थापत्य का शानदार नमूना है। गया व बोधगया भी पहली बार राजसी ट्रेनों के नक्शे पर जुडे हैं। गया तो पिंडदान की नगरी के रूप में हिंदुओं की आस्था से जुडी ही है, वहीं बोधगया दुनिया भर के बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए आस्था के प्रमुख केंद्रों में है। गौतम बुद्ध को ज्ञान देने वाले महाबोधि वृक्ष से लेकर अशोक महान के शासनकाल के अवशेष तक, सब यहां हैं।

महाराजा एक्सप्रेस की यात्रा में शामिल शहर अध्यात्म से लेकर आश्चर्य, वाणिज्य से लेकर सत्ता, स्थापत्य से लेकर विरासत और इतिहास से लेकर प्रकृति- सबकी जीवंत प्रतिमूर्ति हैं। महाराजा एक्सप्रेस दुनिया की सबसे प्राचीन व संपन्न सभ्यता के विभिन्न प्रतीकों के बीच संगम का काम करती है। और यह सब कुछ ऐसी यात्रा में जो विलासिता के चरम का अहसास कराती है।

आनंद ही आनंद

यह ट्रेन आपको एक राजसी अहसास करना से किसी भी मोड पर नहीं चूकती। ट्रेन में डीलक्स केबिन के लिए पांच कोच, जूनियर स्वीट के लिए छह कोच, दो कोच स्वीट के लिए और एक पूरा कोच विशालकाय प्रेसिडेंशियल स्वीट के लिए है। चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्टरी में तैयार कोचों के हर केबिन से बाहर का शानदार नजारा दिखता है ताकि आप सफर का पूरा मजा ले सकें। हर केबिन में वे तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं, जो भारत में किसी ट्रेन यात्रा में पहली बार उपलब्ध कराई गई हैं- जैसे कि व्यक्तिगत तापमान कंट्रोल, एलसीडी टीवी, डीवीडी प्लेयर, डायरेक्ट डायल टेलीफोन, इंटरनेट, वगैरह-वगैरह।

ट्रेन में दो डाइनिंग रेस्तरां हैं और हरेक में 42 लोग एक साथ बैठ सकते हैं। भोजन के साथ परोसी जाने वाली वाइन व बीयर किराये में शामिल है। वैसे किराये में रहने के अलावा, सभी भोजन, सॉफ्ट ड्रिंक, इंडियन वाइन व बीयर के घरेलू ब्रांड, बटलर सेवा, शहरों में घूमना, चाय-कॉफी, मिनरल वाटर, स्मारकों के प्रवेश शुल्क, गाइड वगैरह सब शामिल हैं। कोई गहरी जेब वाला दिलदार हो तो पूरी ट्रेन को भी चार्टर कर सकता है। गरमियों व मानसून में विराम के बाद 19 सितंबर से महाराजा एक्सप्रेस फिर से पटरियों पर दौडने लगेगी।

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