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गोमांतक भूमि यानि गोवा देश-विदेश के पर्यटकों के लिए अल्टीमेट डेस्टीनेशन बन चुका हैं। पिछले चंद सालों से गोवा का आकर्षण दिन दुना-रात चौगुना होता जा रहा है। खूबसूरत समुद्र तट, पांच सौ साल से भी ज्यादा पुराने विशाल गिरजाघर और साफ-सुथरे मंदिर और उतनी ही सुशेगात (सुशेगात कोंकणी लफ्ज है। कोंकणी यहां की मूल भाषा है। सुशेगात का मतलब होता है, सुकूनभरी-शांतिपूर्ण, तसल्लीबख्श) लाइफस्टाइल। सैलानियों में गोवा की लोकप्रियता की यूं तो तमाम वजहें थी हीं, लेकिन अब इको टूरिज्म ने वहां की खूबसूरती में एक नया आयाम जोडा है। गोवा ने अपने समुद्र तट, कैसिनो, चर्च आदि की भव्य खूबसूरती में इको टूरिज्म भी शामिल कर लिया है। इससे यहां आने वाले सैलानियों की संख्या में एक नया वर्ग और जुड गया है। इको टूरिज्म यानि एक तरह से कुदरती पर्यटन स्थल। जहां प्रकृति के साथ इंसानी दखल कम से कम हो, जहां की प्राकृतिक रचना वैसे ही संभाली गई हो जैसी प्रकृति ने हमें दी थी, जहां पर्यावरण का संतुलन न बिगडा हो।
गोवा के इस इको-टूरिज्म नक्शे में शामिल हैं-भगवान महावीर वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी या जिसे पहले कहा जाता था मोलेम नेशनल पार्क। गोवा की राजधानी पणजी से साठ किमी की दूरी पर यानि पणजी-बेलगाम नेशनल हाइवे पर यह वन्य जीव अभयारण्य 107 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला है, जहां उंचे पहाड भी हैं, और गहरी घाटियां भी। पक्षियों को देखना जिन्हें भाता हैं, उनके लिए यह स्थान सटीक है। यहां पक्षियों और जंगली जानवरों की कई किस्मों के नजारे बेहद नजदीक से देखे जा सकते हैं। यहां से महज एक घंटे की दूरी पर है दूधसागर फॉल्स जिसकी ख्याति दूर-दराज तक फैली हैं। आंखों को सुकून देना हो, तो दुधसागर जैसे कुदरती वॉटरफॉल का कोई विकल्प नहीं हैं। इको टूरिज्म के जितने स्थल गोवा में हैं, शायद ही कहीं ओर हो। पणजी से 52 किमी और मडगांव से 36 किमी की दूरी पर एक खूबसूरत जंगल बना हैं, जिसे बोन्डला के नाम से जाना जाता हैं। बोन्डला वन्यजीव अभयारण्य भी है, और चिडियाघर व बोटोनिकल गार्डन भी। सपरिवार रहने और जंगल का लुत्फ उठाने के लिए गोवा सरकार की तरफ से यहां बेहतरीन कॉटेज भी उपलब्ध हैं। यहां देखने लायक अन्य चीजों में डीयर सफारी पार्क, बर्ड लाइफ पार्क, नेचर एजुकेशन सेंटर, रोज गार्डन भी हैं। लेकिन बोंडला पार्क हर बृहस्पतिवार को बंद रहता है। गोवा की तीसरी बडी वाइल्ड-लाइफ सैंक्चुअरी है- कोतिगांव। दक्षिण गोवा का यह प्रमुख पर्यटन स्थल पणजी से 76 किमी की दूरी पर बना हैं। वहीं सालिम अली बर्ड सैंक्चुअरी तो पूरी दुनिया में जानी जाती है। यह गोवा की प्रख्यात मांडवी नदी के किनारे फैली है। यहां पक्षियों की विविध किस्में देखने पूरे साल भर पर्यटक यहां आते रहते हैं।
गोवा जाने वाले हर पर्यटक की, चाहे वो विदेशी हो या देशी, स्थानीय फूड खाए बिना गोवा यात्रा व्यर्थ कहलाएगी। दुनियाभर में मशहूर यहां के खाने का असली जायका उसके मसालों में हैं। यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से गोवा के इको टूरिज्म में स्पाइस प्लांटेशन भी प्रमुख तौर पर शामिल हो गए हैं। वैसे, विदेशी पर्यटक तो गोवा के मशहूर काजू, कोकोनट, आम, आमसूल के बगीचे देखने में भी बेहद रुचि रखते हैं। गोवा में हर्बल गार्डंस पर्यटकों के लिए नया आकर्षण बनते जा रहे हैं। पार्वती-माधव पार्क प्लान्टेशन, केरी नामक गांव में बसा हैं, जहां काफी सारा हर्बल कल्टीवेशन किया गया है। ऑर्गेनिक फार्मिग के अलावा यहां पर पर्यटकों का ठेठ गोवन लजीज खाना भी खिलाया जाता है। इसके अलावा वालपई गांव के निकट रस्टिक प्लांटेशन फलों के बगीचों के लिए खास देखने लायक है। इनके अलावा सहकारी स्पाइस फार्म, संस्कृति सैवियो प्लांटेशन आदि पर मसाले उगाए जाते हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
स्पाइस फार्म्स की हम बात करें और पास्कल ऑर्गेनिक स्पाइस विलेज का जिक्र न करें तो गलत होगा। गोवा की मशहूर खांडेपार नदी के नाम पर एक गांव है खांडेपार है। इसी नदी के किनारे पास्कल स्पाइस फार्म मौजूद है। यहां पहुंचने के लिए आपको फोंडा शहर से आठ किमी अंदर जाना होगा। मिलग्रीस फर्नाडिस और उनकी पत्नी एमिशिएना के प्रकृति प्रेम ने उन्हें पास्कल स्पाइस फार्म का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। मिलग्रीस फर्नाडिस के बडे भाई भी नेचर लवर थे। उनका अचानक इंतकाल होने पर फर्नाडिस दंपति ने उनकी याद में इस खूबसूरत स्पाइस फार्म का निर्माण किया, जो अब गोवा आने-वाले कई देशी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद बन चुका है। 1992 में इन्हें गोवा सरकार का सर्वश्रेष्ठ किसान का पुरस्कार मिल चुका हैं। 1998 में वह एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जीत चुके हैं। वैसे, तो गोवा में काफी सारी कृषि भूमि को इको टूरिज्म की तर्ज पर विकसित किया गया है, पर लगभग 20 एकड में फैले पास्कल फार्म को पर्यटक खासा ऊंचा आंकते हैं। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि यह सौ फीसदी आर्गनिक फार्म है। यहां के प्रवेश द्वार पर ही गजराज आपका भव्य स्वागत करता है। हाथी पर मेहमानों की सवारी इनके आतिथ्य की खासियत हैं। खांडेपार नदी में राफ्टिंग का अनुभव भी लिया जा सकता है। मेहमानों की खालिस देसी अंदाज में खातिरदारी के लिए गोवन संगीत और नृत्य से सजी महफिल मदमस्त कर देती है। प्रकृति की असाधारण खूबसूरती से सराबोर वातावरण में जब इतनी शानदार मेहमानवाजी हो, तो क्या कहने। यहां जंगल के बीचों-बीच बने रेस्तरां में बैठकर गोवन फूड जैसे झींगा, लॉबस्टर, क्रैब (केकडा), सोलकढी का मजा लेना अनोखा अनुभव हैं। स्थानीय भोजन में सीफूड के अलावा शाकाहारी व कॉंटिनेंटल व्यंजन भी परोसे जाते हैं। यहां जो पर्यटक रुकना चाहते हैं, उनके लिए खूबसूरत कॉटेज भी हैं। कई कॉटेज तो खांडेपार नदी के ठीक सामने हैं। वहां फिशिंग, बोटिंग, स्विमिंग जैसी सारी मौज-मस्ती उपलब्ध है।
दूधसागर का बहता पानी आगे जाकर इसी खांडेपार नदी में मिल जाता हैं, तो उसकी सुंदरता में मानो चार चांद लग जाते हैं। चारों ओर खूशबू फैलाते फूल, खिले हुए कमल, औषधि वनस्पतियां- सबका मिला-जुला असर दीवाना सा बना देता है। लौंग, इलायची, काली मिर्च, जायफल, हींग, हल्दी जैसे पारंपरिक मसाले तो हैं ही, केसर, वैनिला और एलोवेरा जैसी नई खोजी औषधियां और बांस, तुलसी, नीम व लेमनग्रास जैसे पेड-पौधे भरपूर हैं। लोकप्रिय विदेशी फूल- एंथूरियम, ऑर्किड, जरबेरा, बोगनवेलिया, एक्झोरा, कई तरह के फर्न, हेलिकोर्निया, पेंडुलम वगैरह यहां की प्रकृति में रंग भरते हैं। पर्यटकों के लिए यहां बर्ड वाचिंग भी एक बडा आकर्षण है। यहां बडी संख्या में प्रवासी पक्षी भी हर साल आते रहते हैं। इसकी गोवा के पर्यटन सर्किट में अलग जगह बन गई है। गोवा में यदि समुद्र तटों से इतर शांत छुट्टियां आप मनाना चाहते हैं तो इस अनुभव को आजमाया जा सकता है।
कैसे घूमें
गोवा की सडकें बेहद आरामदायक हैं। किसी भी कोने से किसी भी कोने तक जाने के लिए किराये पर मोटर साइकिल और कार उपलब्ध हैं। निजी बस सेवा और सरकारी कदंब बस सेवा भी हर शहर के लिए उपलब्ध है। स्वप्नगंधा जंगल में कोलारघाट में स्थित दूधसागर वाटरवाल्स गोवा-कर्नाटक सीमा पर स्थित हैं। ऊंचाई में यह प्रपात भारत में पांचवे नंबर पर है। नाम के अनुरूप दूध जैसा पानी। पणजी या मडगाव से टैक्सी या बस से यहां पहुंचा जा सकता है। लेकिन सबसे मजेदार बात यह है कि दो हजार फुट की ऊंचाई से गिरते इस झरने के ठीक सामने कुछ मीटर की दूरी पर रेल पटरी गुजरती है। मडगाव से ट्रेन से यहां आया जा सकता है। रोमांच प्रेमी प्रपात के सहारे-सहारे चटनों व झाडियों पर चढाई करते-करते उसके शीर्ष तक पहुंच जाते हैं। मडगाव के लिए दिल्ली-मुंबई व अन्य जगहों से सीधी ट्रेनें हैं। दांबोलिन हवाईअड्डा भी मडगाव से पांच किलोमीटर दूर है।
2 Responses to “सागर से परे का गोवा”